'रहीम' के दोहे से प्राप्त कोई तीन शिक्षाएं लिखिए?
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हमें दूसरों की भलाई अपने सामथ्र्य के अनुसार हीं करनी चाहिये। छोटी छोटी भलाई करने बाले भी नहीं रहते और बड़े उपकार करने बाले भी मर जाते हैं-केवल उनकी यादें और बातें रह जाती हैं। उनते पहिले वे मुए जिन मुख निकसत नाहि । जो किसी से कुछ मांगने याचना करने जाता है -वह मृतप्राय हो जाता है-कयोंकि उसकी प्रतिश्ठा नही रह जाती।
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1.रहिमन निज मन की ब्यथा मन ही रारवो गोय
सुनि इठि लहै लोग सब बंटि न लहै कोय ।
अपने मन के दुख को अपने तन में हीं रखना चाहिये।
दूसरे लोग आपके दुख को सुनकर हॅसी मजाक करेंगें लेकिन कोई भी उस दुख को बाॅटेंगें नही।
अपने दुख का मुकाबला स्वयं करना चाहिये
2.एकै साधै सब सधै सब साधे सब जाय
रहिमन मूलहिं संचिबो फूलै फलै अघाय ।
किसी काम को पूरे मनोयोग से करने से सब काम सिद्ध हो जाते हैं।
एक हीं साथ अनेक काम करने से सब काम असफल हो जाता है।
बृक्ष के जड़ को सिंचित करने से उसके सभी फल फूल पत्ते डालियाॅ पूर्णतः पुश्पित पल्लवित हो जाते हैं।
3.हित रहीम इतनै करैं जाकी जिती बिसात
नहि यह रहै न वह रहै रहे कहन को बात ।
हमें दूसरों की भलाई अपने सामथ्र्य के अनुसार हीं करनी चाहिये।
छोटी छोटी भलाई करने बाले भी नहीं रहते और बड़े उपकार करने बाले भी मर जाते हैं-केवल उनकी यादें और बातें रह जाती हैं।
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