रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय। सुनी इठलैहैं लोग सब, बांटी न लेंहैं कोय।। शब्दार्थ
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अपने स्वयं के दुख को अपने मन में ही रखो। लोग सुनेंगे लेकिन दुःख कोई नहीं बांटेगा।
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