रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सनिु अठिलहैैंलोग सब, बाँटि न लहैैंकोय।।
एकैसाधेसब सध, ैसब साधेसब जाय।।
रहिमन मलू हिंसींचिबो, फूलैफलैअघाय।।
व्यक्ति क्या सोचकर अपनी व्यथा (पीड़ा) दसर ू ों को सनाता ु है?
(a) कि उसका दःखु कम हो जाएगा
(b) कि उसका दःखु बढ़ जाएगा
(c) कि लोग उसकी सहायता करेंगे
d) कि लोग उस पर दया दिखाएँगे।
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रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय॥
Explanation:
रहीम कहते हैं कि अपने मन के दुःख को मन के भीतर छिपा कर ही रखना चाहिए। दूसरे का दुःख सुनकर लोग इठला भले ही लें, उसे बाँट कर कम करने वाला कोई नहीं होता।
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