Hindi, asked by rocky232755, 7 months ago

रहिमन वे नर मर चुके, जे कहुँ माँगन जाँहि।
उनते पहले वे मुए, जिन मुख निकसत नाँहि।।1।।
दोनों रहिमन एक से, जो लौं बोलत नाँहि।
जान परत हैं काक-पिक, रितु बसंत के माँहि।।2।।
तरुवर फल नहीं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति संचहि सुजान।।।।
कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीत।
बिपति कसौटी जे कसे, सो ही साँचे मीत।।4।।
रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलैहें लोग सब, बाँटि न लैहें कोय।।5।।
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तलवारि।।6।।
what is the meaning of this paragraph​

Answers

Answered by Vaishnavi7491
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Answer: 1.पहले दोहे में रहीम कवि कहते हैं कि वह नर मर चुके हैं जो किसी के सामने, किसी के पास हाथ फैलाते हैं ,उनसे कुछ मांगने जाते हैं । और वह नर जो मांगने पर भी इंकार कर देते हैं वह उनसे भी पहले मर चुके हैं।

2.दूसरे दोहे में रहीम कवि कहते हैं कि दोनों कौवा और कोयल एक समान है तब तक इनकी पहचान का पता नहीं चल पाता जब तक यह अपने मुख से कुछ बोलते नहीं लेकिन जैसे ही वसंत आता है दोनों में भेज पता चल जाता है कोयल अपने मीठे स्वर से सबका मन मोह लेती है।

3. पेड़ पौधे अपना फल स्वयं नहीं खाते हैं उसी तरह सरोवर भी अपना पानी स्वयं नहीं पीता है. इसी तरह अच्छे और सज्जन पुरुष वह है जो दूसरों के काम के लिए उनकी भलाई के लिए संपत्ति/ धन जमा करता है ।

4.इस दोहे का अर्थ है की जब मनुष्य के पास धन-संपत्ति होती है तो बहुत से लोग उनके मित्र बन जाते हैं लेकिन जो मित्र मुश्किल के वक्त साथ दे /साथ रहे वही एक सच्चा मित्र कहलाता है .

5.रहीम दास जी कहते हैं कि अपने मन का दुख अपने मन में ही रखना चाहिए। किसी को बताना नहीं चाहिए क्योंकि दूसरे लोग उसे सुनकर उसका मजाक तो बना सकता है , मगर ऐसा कोई नहीं जो आपके दुख को बांट सके या बांटना चाहता हो।

6.इस पंक्ति में रहीम दास जी ने बहुत बड़ी बात समझाई है । वह कहते हैं की किसी बड़ी वस्तु को देखकर छोटी को ठुकराना नहीं चाहिए , क्योंकि जिस काम में हमारी मदद सुई कर सकती है उस काम में तलवार कुछ नहीं कर सकती ।

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Answered by bablimodi1985
3

Answer:

(1) प्रस्तुत दोहे में रहीम जी कह रहे हैं कि वे नर मृत समान हैं जो किसी के सामने हाथ फैलाते हैं पर उनसे भी पहले वे मनुष्य मृत समान हो जाते हैं जो देने से पहले ही मना कर देते हैं।

(2) रहीम इस दोहे में हमें यह सीख दे रहें हैं कि हमारे आस-पास रहने वाले सभी लोग एक-से दिखते हैं परंतु जब हम किसी विपत्ति में पड़ते हैं तो उनके व्यवहार से उनका असली चेहरा हमारे सामने आ जाता है, ठीक उसी प्रकार कौआ और कोयल भी एक जैसे दिखते हैं परंतु वसंत के मौसम में कोयल की कूक और कौए की काँव-काँव से उन दोनों में निहित अंतर स्पष्ट हो जाता है।

(3) रहीम जी का मानना है कि जिस प्रकार पेड़ अपना फल खुद नहीं खाता, नदी अपना जल खुद नहीं पीती उसी प्रकार सज्जन भी धन का संचय ज़रूरतमंदों की मदद करने के लिए करते हैं।

(4) रहीम जी सच्चे दोस्तों की पहचान करने का तरीका बताते हुए कह रहे हैं कि जब हमारे पास बहुत धन-संपत्ति होती है तो दूर-दूर के रिश्ते बन जाते हैं पर हमारा सच्चा मित्र और सच्चे संबंधी वे ही होते हैं जो संकट के समय में हमारा साथ न छोड़ें।

(5) रहीम जी कहना है कि हमें अपने मन की व्यथा को हर किसी के सामने प्रगट नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसे में वे हमारी समस्या का समाधान न करके उसका प्रचार कर देंगे और मन-ही मन ये सोचकर खुश होंगे कि ठीक हुआ हम इस समस्या से बच गए।

(6) रहीम जी इस दोहे में समानता की बात बताते हुए कह रहे हैं हमें बड़ों को देखकर छोटों का साथ नहीं छोड़ देना चाहिए । इस दुनिया में बड़े-छोटे सभी अपनी-अपनी जगह में महत्त्वपूर्ण होते हैं। इसीलिए कहा भी गया है कि कपड़े सीने के लिए हमें सुई की आवश्यकता पड़ती है और युद्ध करने के लिए तलवार की परंतु विपरीत स्थिति में ये दोनों निरर्थक हैं।

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