Rahim ki Sanskriti ke kavi the
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यघात्रया व्यापकता हता थे भिदैकता वाक्परता च स्तुत्या ।
ध्यामने बुद्धेपरतु , परेशं जात्यऽजता क्षन्तुमिहार्हसि त्वं ।।
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रहीम मध्यकालीन सामंतवादी संस्कृति के कवि थे | रहीम का जन्म बैरम खान के घर में 1956 में हुआ था | रहीम साम्प्रदायिक सद्भावना के प्रतीक थे | रहीम एक मानव प्रेमी व सत्यनिष्ठ व्यक्तित्व के धनी थे | अकबर ने रहीम को मीर अर्ज का पद दिया था | रहीम अनेक भाषाओँ के ज्ञाता थे जैसेकि तुर्की, अरबी, फारसी, हिंदी इत्यादि|
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