Political Science, asked by atif3009, 9 months ago

Rajniti ke sampradayikta ke aadhar per chalti hai

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Answered by surendrkgp19821
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भारतीय राजनीति में साम्प्रदायिकता को उत्प्रेरक के रूप में उपयोग किया जाता है 4 years ago शैलेन्द्र चौहान

शैलेन्द्र चौहान

भारत में जब भी साम्प्रदायिकता की बात चलती है तो उसका आशय हिन्दू मुस्लिम सम्बंधों में आपसी द्वेष से लिया जाता है। यदि साम्प्रदायिक समस्या के समाधान की भी बात की जाती है तो भी हिन्दू मुस्लिम विरोध को समाप्त करने का ही अर्थ लिया जाता है। असल में भारत में सम्प्रदाय का तात्पर्य ही हिन्दू- मुस्लिम विभाजन से है। ‘यह तथ्य ध्यातव्य है कि 1914-15 के शहीदों ने धर्म को राजनीति से अलग कर दिया था। वे समझते थे कि धर्म व्यक्ति का व्यक्तिगत मामला है इसमें दूसरे का कोई दखल नहीं। इसे राजनीति में न घुसाना चाहिए क्योंकि यह समस्त भारतीय जनों को मिलकर एक जगह काम नहीं करने देता। इसलिए गदर पार्टी जैसे आन्दोलन एकजुट व एकजान रहे, जिसमें सिख बढ़-चढ़कर फाँसियों पर चढ़े और हिन्दू मुसलमान भी पीछे नहीं रहे। यदि धर्म को अलग कर दिया जाये तो राजनीति पर हम सभी इकट्ठे हो सकते है। धर्मों में हम चाहे अलग-अलग ही रहें।’ इतिहास के पन्नों में ऐसे अनगिनत मुस्लिम स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के नाम दर्ज हैं निन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में हिन्दू स्वातंत्र्य योद्धाओं के साथ मिलकर अपना बहुमूल्य योगदान दिया। अंग्रेजों के खिलाफ भारत के संघर्ष में अनेकों मुस्लिम क्रांतिकारियों, कवियों और लेखकों का योगदान उल्लेखनीय है। तितु मीर ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह किया था। मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, हकीम अजमल खान और रफी अहमद किदवई भी इस संघर्ष में शामिल थे। शाहजहांपुर के अशफाक उल्ला खान ने काकोरी (लखनऊ) पर ब्रिटिश राजकोष को लूटने की योजना बनाई थी। भोपाल के बरकतुल्लाह ग़दर पार्टी के संस्थापकों में से एक थे जिसने ब्रिटिश विरोधी संगठनों से नेटवर्क बनाया था। ग़दर पार्टी के सैयद शाह रहमत ने फ्रांस में एक भूमिगत क्रांतिकारी रूप में काम किया और 1915 में असफल गदर (विद्रोह) में उनकी भूमिका के लिए उन्हें फांसी की सजा दी गई। फैजाबाद (उत्तर प्रदेश) के अली अहमद सिद्दीकी ने जौनपुर के सैयद मुज़तबा हुसैन के साथ मलाया और बर्मा में भारतीय विद्रोह की योजना बनाई और 1917 में उन्हें फांसी पर लटका दिया गया। केरल के अब्दुल वक्कोम खदिर ने 1942 के ‘भारत छोड़ो’ में भाग लिया और 1942 में उन्हें फांसी की सजा दी गई थी। उमर सुभानी जो कि बंबई के एक करोड़पति उद्योगपति थे, उन्होंने गांधी और कांग्रेस स्वतंत्रता संघर्ष के लिए धन प्रदान किया था और अंततः स्वतंत्रता आंदोलन में अपने को कुर्बान कर दिया।

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