Rajya aur rastra me anter
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राज्य : राज्य राजनीति के अध्ययन का केन्द्र बिन्दु है। राज्य कुछ प्रमुख तत्वों से मिलकर बना होता है। जैसे कि एक निश्चित भू-भाग। राज्य एक निश्चित भू-भाग के दायरे में होता है। इसके बाद आती है जनसंख्या। राज्य के निश्चित भू-भाग के दायरे में एक जनसंख्या निवास करती है। राज्य एक मानव समुदाय होता है, जिसके बिना राज्य की कल्पना नहीं की जा सकती।
इसके बाद जब निश्चित सीमाओं के दायरे में एक जनसंख्या निवास करती है तो उसकी एक सरकार होनी चाहिए। क्योंकि सरकार ही वह यंत्र है जो उन उद्देश्यों एवं लक्ष्यों को व्यावहारिक रूप देता है, जिसके लिए राज्य का उदय हुआ है। अब सबसे अंत में आती है संप्रभुता। संप्रभुता का अर्थ है ‘सर्वोच्च सत्ता’। संप्रभुता राज्य को आज्ञा देने वाली शक्ति है। किसी निश्चित भू-भाग में रहने वाले, सरकार संपन्न मानव समुदाय को भी तब तक राज्य नहीं कहा जा सकता, जब तक संप्रभुता उनके अधिकार में न हो, अर्थात् जब तक वह मानव समुदाय अपनी आंतरिक एवं बाह्य समस्याओं के समाधान और नीति निर्धारित करने के लिए स्वतंत्र न हो
राष्ट्र : राष्ट्र भू- भागीय सीमाओं से परे होता है। राष्ट्र का गठन भौगोलिक न होकर सांस्कृतिक होता है। एक ही सभ्यता, संस्कृति, इतिहास, कभी - कभी एक तरह की भाषा और रीति रिवाजों को साझा करने वाले मानव समूहों से राष्ट्र बनता है। राष्ट्र में व्यक्तियों को जो एक चीज जोड़ती है, वह है एक होने की भावना। अत: राष्ट्र से एक संगठन का विचार आता है। पुराने समय में एक राष्ट्र के घटक आज की अपेक्षा और भी सूक्ष्म और एकात्म थे। जैसे कि एक समान भाषा, एक समान धर्म और कभी - कभी एक ही कुल। अतः एक वाक्य में कहा जाए तो राज्य की परिकल्पना आधुनिक और इसका आधार राजनैतिक है, जबकि राष्ट्र की अवधारणा प्राचीन और इसका आधार सांस्कृतिक है
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