रक्षा बंधन पर निबंध 250 शव्द में
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वैसे इस पर्व का संबंध रक्षा से है। जो भी आपकी रक्षा करने वाला है उसके प्रति आभार दर्शाने के लिए आप उसे रक्षासूत्र बांध सकते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने रक्षा सूत्र के विषय में युधिष्ठिर से कहा था कि रक्षाबंधन का त्योहार अपनी सेना के साथ मनाओ इससे पाण्डवों एवं उनकी सेना की रक्षा होगी। श्रीकृष्ण ने यह भी कहा था कि रक्षा सूत्र में अद्भुत शक्ति होती है। रक्षाबंधन से सम्बन्धित इस प्रकार की अनेकों कथाएं हैं।
रक्षा बंधन पर्व मनाने की विधि : रक्षा बंधन के दिन सुबह भाई-बहन स्नान करके भगवान की पूजा करते हैं। इसके बाद रोली, अक्षत, कुंमकुंम एवं दीप जलकर थाल सजाते हैं। इस थाल में रंग-बिरंगी राखियों को रखकर उसकी पूजा करते हैं फिर बहनें भाइयों के माथे पर कुंमकुंम, रोली एवं अक्षत से तिलक करती हैं।
इसके बाद भाई की दाईं कलाई पर रेशम की डोरी से बनी राखी बां धती हैं और मिठाई से भाई का मुंह मीठा कराती हैं। राखी बंधवाने के बाद भाई बहन को रक्षा का आशीर्वाद एवं उपहार व धन देता है। बहनें राखी बांधते समय भाई की लम्बी उम्र एवं सुख तथा उन्नति की कामना करती है।
इस दिन बहनों के हाथ से राखी बंधवाने से भूत-प्रेत एवं अन्य बाधाओं से भाई की रक्षा होती है। जिन लोगों की बहनें नहीं हैं वह आज के दिन किसी को मुंहबोली बहन बनाकर राखी बंधवाएं तो शुभ फल मिलता है। इन दिनों चांदी एवं सोनी की राखी का प्रचलन भी काफी बढ़ गया है। चांदी एवं सोना शुद्ध धातु माना जाता है अतः इनकी राखी बांधी जा सकती है लेकिन, इनमें रेशम का धागा लपेट लेना चाहिए।
रक्षाबंधन का मंत्र : येन बद्धो बलिः राजा दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वामभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥
रक्षाबंधन का धार्मिक महत्व : भाई बहनों के अलावा पुरोहित भी अपने यजमान को राखी बांधते हैं और यजमान अपने पुरोहित को। इस प्रकार राखी बंधकर दोनों एक दूसरे के कल्याण एवं उन्नति की कामना करते हैं। प्रकृति भी जीवन के रक्षक हैं इसलिए रक्षाबंधन के दिन कई स्थानों पर वृक्षों को भी राखी बांधा जाता है। ईश्वर संसार के रचयिता एवं पालन करने वाले हैं अतः इन्हें रक्षा सूत्र अवश्य बांधना चाहिए।
कहते हैं कि चित्तौड़गढ़ की रानी कर्णावती ने बहादुर शाह के आक्रमण के पश्चात् हुमायूँ को राखी भेजी थी और उससे मदद मांगी थी!हुमायूँ ने एक मुस्लिम होने बाद भी उस राखी की कीमत जानी,वो जानता था कि राखी हिन्दू भाई-बहन के लिए कितना महत्त्व रखता है!वो बिना एक भी क्षण गंवाए अपनी पूरी सेना के साथ चित्तौड़ पहुंचा लेकिन तबतक देर हो चुकी थी और रानी कर्णावती जौहर कर चुकी थीं!बाद में बहादुर शाह पर आक्रमण कर हुमायूँ ने चित्तौड़ को मुक्त किया और रानी कर्णावती के पुत्र विक्रमजीत सिंह को सौंप दिया!बात सैंकड़ों वर्ष पुरानी है किन्तु राखी की ऐसी मिसाल आज भी कथाओं में बस एक यही है! राखी सिर्फ एक त्यौहार नहीं बल्कि एक शपथ है,जो एक भाई अपनी बहन और एक बहन अपने भाई के लिए सर्वस्व निछावर करने के लिए लेते हैं!
सावन के महीने में ये त्यौहार मनाया जाता है,बहनें अपने भाइयों की कलाईयों पर रक्षा सूत्र अर्थात् राखी बांधती हैं,माथे पर तिलक लगाती है और उनकी लम्बी उम्र की प्रार्थना करते हुए उनकी आरती उतारती हैं,और बदले में भाई अपनी बहन को जीवन पर्यंत रक्षा का वचन देता है!
परन्तु समय के बदलते स्वरुप में रिश्तों का स्वरुप भी बदलता जा रहा है,राखी की समझ ख़त्म हो रही है,और औपचारिकताएं बढ़ने लगी हैं! आज का शत्रु कोई बहादुर शाह या खिलजी नहीं अपितु सामाजिक व्यवस्था है, जिसके कारण कई बहनें भाइयों के होते हुए भी ससुराल और पति द्वारा जलाई और मारी जा रही हैं,ऐसे में भाइयों के उन राखी वाले हाथों का कर्तव्य है कि अपनी बहन को संभाले और उसे लायक और काबिल बनाए!
आज आवश्यकता है राखी के उस मर्म को समझने की,क्योंकि जब हम अपनी बहन को जानेंगे तभी औरों की बहनों को समझेंगे और लड़कियों के प्रति होने वाले अपराधों की संख्या में कमी होगी,कोई भी किसी लड़की को बुरी नीयत से छो भी नहीं सकेगा!राखी को आज बहुत ही दिल से समझने की आवश्यकता है!