ramayan se prabhu shri ram ka charitra varnan likhe.in Sanskrit
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रमणे कणे कणे इति रामः”
जो कण-कण में बसे, वही राम है। श्रीराम की सनातन धर्म में अनेकों गाथाएं विद्यमान है। श्रीराम के जीवन की अनुपम कथाएं, महर्षि वाल्मिकी ने बड़े ही सुंदर ढंग से रामायण में प्रस्तुत किया है। इसके अतिरिक्त गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस रच कर जन-जन के हृदय तक श्रीराम को पहुंचा दिया।
श्रीराम नवमी
“चैत्रे नावमिके तिथौ।।
नक्षत्रेऽदितिदैवत्ये स्वोच्चसंस्थेषु पञ्चसु।
ग्रहेषु कर्कटे लग्ने वाक्पताविन्दुना सह।।”
वाल्मिकी कृत रामायण में उल्लिखित यह श्लोक प्रभु राम के जन्म के बारे में है। श्रीराम का जन्म त्रेता युग में हुआ था। उनका जन्म दिवस चैत्र मास की नवमी तिथि को मनाया जाता है।
प्रभु श्रीराम का जन्म वर्तमान उत्तर प्रदेश के अयोध्या में हुआ था। वो अयोध्या के राजा दशरथ के सबसे बड़े पुत्र थे। राजा दशरथ की तीन रानियां थी – कौशल्या, कैकेयी और सबसे छोटी सुमित्रा। राजा दशरथ को पुत्रों की प्राप्ति बहुत ही जप-तप के बाद हुई थी। उनकी तीन रानियों से चार पुत्र रत्नों की प्राप्ति हुई। सबसे बड़ी रानी कौशल्या से राम, कैकेयी से भरत और सुमित्रा से लक्ष्मण और शत्रुघ्न।
बालपन
बचपन से ही श्रीराम बहुत सहृदयी और विनयशील थे, और अपने पिता के सबसे करीब थे। या यूं कहे, वो राजा दशरथ की कमजोरी थे। राजा दशरथ एक पल भी उन्हें अपनी नजरों से दूर नहीं करना चाहते थे। सौतेली मां होने के बाद भी वो सबसे ज्यादा कैकेयी को स्नेह और सम्मान देते थे। उनके लिए उनकी तीनों माताएं एक समान थी। ज्येष्ठ होने के कारण वो अपने सभी छोटे भाईयों का बहुत अधिक ध्यान रखते थे।
शिक्षा-दीक्षा
श्रीराम की शिक्षा-दीक्षा गुरु वशिष्ठ के आश्रम में सम्पन्न हुई थी। प्रभु राम बचपन से ही बहुत पराक्रमी थे। बाल्यकाल से ही अपने पराक्रम का अनुक्रम शुरु कर दिया था। आगे चलकर उन्होंने अनेकों राक्षसों का वध किया और सबसे महत्वपूर्ण महा बलशाली लंकापति रावण को मारा और इस धरती को पावन किया।
निष्कर्ष
प्रभु श्री राम की इतनी कथाएं हैं जिसे एक निबंध में पिरो पाना मुमकिन नहीं। श्रीराम का चरित्र अनुकरणीय है। हम सभी को उनके आदर्शो पर चलना चाहिए।
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