ramdhari singh sonkar life introduction (hindi) very short and accurate at least 10 lines only
Answers
Answer:
Actually he is ramdhari singh dinkar
Explanation:
dinkar ji ka janm 1908 mein hua. Inhe rashtr kavi bhi kaha jata hai.
dinkar ji ko urvashi kruti ke lie gnyaanpeet puraskar bhi mila hai.
parashuram ki prateeksha rashmirathi kurukshetr rasvanthi inki aadi rachnayein hai.
inhe padma bhushan puraskar aur sahity akadami puraskar se sammanith kiya gaya hai. inka dehanth 1974 mein hua hai.
#hopeithelps
एक इंसान की पहचन हमेसा उसके करमो से ही होती है। इसी विचार को आंगे रख्ते हुए मै उनक़ी वीर रस की अभुत-पुणय कविता "रश्मिरथी" paste कर रहा हूँ । बाकी introduction तो भाई ने दे ही दिया है।
हो गया पूर्ण अज्ञात वास, पाडंव लौटे वन से सहास,
पावक में कनक-सदृश तप कर, वीरत्व लिए कुछ और प्रखर,
नस-नस में तेज-प्रवाह लिये,
कुछ और नया उत्साह लिये।
सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है,
शूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते,
विघ्नों को गले लगाते हैं,
काँटों में राह बनाते हैं।
मुख से न कभी उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं,
जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग-निरत नित रहते हैं,
शूलों का मूल नसाने को,
बढ़ खुद विपत्ति पर छाने को।
है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके वीर नर के मग में?
खम ठोंक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़।
मानव जब जोर लगाता है,
पत्थर पानी बन जाता है।
गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर,
मेंहदी में जैसे लाली हो, वर्तिका-बीच उजियाली हो।
बत्ती जो नहीं जलाता है
रोशनी नहीं वह पाता है।
पीसा जाता जब इक्षु-दण्ड, झरती रस की धारा अखण्ड,
मेंहदी जब सहती है प्रहार, बनती ललनाओं का सिंगार।
जब फूल पिरोये जाते हैं,
हम उनको गले लगाते हैं।
वसुधा का नेता कौन हुआ? भूखण्ड-विजेता कौन हुआ?
अतुलित यश क्रेता कौन हुआ? नव-धर्म प्रणेता कौन हुआ?
जिसने न कभी आराम किया,
विघ्नों में रहकर नाम किया।
जब विघ्न सामने आते हैं, सोते से हमें जगाते हैं,
मन को मरोड़ते हैं पल-पल, तन को झँझोरते हैं पल-पल।
सत्पथ की ओर लगाकर ही,
जाते हैं हमें जगाकर ही।
वाटिका और वन एक नहीं, आराम और रण एक नहीं।
वर्षा, अंधड़, आतप अखंड, पौरुष के हैं साधन प्रचण्ड।
वन में प्रसून तो खिलते हैं,
बागों में शाल न मिलते हैं।
कंकरियाँ जिनकी सेज सुघर, छाया देता केवल अम्बर,
विपदाएँ दूध पिलाती हैं, लोरी आँधियाँ सुनाती हैं।
जो लाक्षा-गृह में जलते हैं,
वे ही शूरमा निकलते हैं।
बढ़कर विपत्तियों पर छा जा, मेरे किशोर! मेरे ताजा
जीवन का रस छन जाने दे, तन को पत्थर बन जाने दे।
तू स्वयं तेज भयकारी है,
क्या कर सकती चिनगारी है?
वर्षों तक वन में घूम-घूम, बाधा-विघ्नों को चूम-चूम,
सह धूप-घाम, पानी-पत्थर, पांडव आये कुछ और निखर।
सौभाग्य न सब दिन सोता है,
देखें, आगे क्या होता है।
………………………………………………………………………………
कैर यह कविता सुध हिन्दी और संस्कृति के शब्दों से रची गई है। तो आपके लिए यह कविता समझना हल्का सा मुश्किल हो सकता।