Rango ka tyohar Holi par nibandh class 6th
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Explanation:
होली एक ऐसा रंगबिरंगा त्योहार है, जिस हर धर्म के लोग पूरे उत्साह और मस्ती के साथ मनाते हैं। प्यार भरे रंगों से सजा यह पर्व हर धर्म, संप्रदाय, जाति के बंधन खोलकर भाई-चारे का संदेश देता है। इस दिन सारे लोग अपने पुराने गिले-शिकवे भूल कर गले लगते हैं और एक दूजे को गुलाल लगाते हैं। बच्चे और युवा रंगों से खेलते हैं। फाल्गुन मास की पूर्णिमा को यह त्योहार मनाया जाता है। होली के साथ अनेक कथाएं जुड़ीं हैं। होली मनाने के एक रात पहले होली को जलाया जाता है। इसके पीछे एक लोकप्रिय पौराणिक कथा है।
भक्त प्रह्लाद के पिता हरिण्यकश्यप स्वयं को भगवान मानते थे। वह विष्णु के विरोधी थे जबकि प्रह्लाद विष्णु भक्त थे। उन्होंने प्रह्लाद को विष्णु भक्ति करने से रोका जब वह नहीं माने तो उन्होंने प्रह्लाद को मारने का प्रयास किया।
प्रह्लाद के पिता ने आखर अपनी बहन होलिका से मदद मांगी। होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था। होलिका अपने भाई की सहायता करने के लिए तैयार हो गई। होलिका प्रह्लाद को लेकर चिता में जा बैठी परन्तु विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहे और होलिका जल कर भस्म हो गई।
यह कथा इस बात का संकेत करती है की बुराई पर अच्छाई की जीत अवश्य होती है। आज भी पूर्णिमा को होली जलाते हैं, और अगले दिन सब लोग एक दूसरे पर गुलाल, अबीर और तरह-तरह के रंग डालते हैं। यह त्योहार रंगों का त्योहार है।
रंगों का त्योहार होली :-
हिन्दुओं के चार बड़े पर्वों में से एक है। यह पर्व फाल्गुनी पूर्णिमा को होलिका दहन के पश्चात् चैत्र कृष्ण प्रतिपदा में धूमधाम से मनाया जाता है । वसन्त ऋतु वैसे भी ऋतुराज के नाम से जानी जाती है । इसी प्रकार फाल्गुन का महीना भी अपने मादक सौन्दर्य तथा वासन्ती पवन से लोगों को हर्षित करता है । हमारा प्रत्येक पर्व किसी-न-किसी प्राचीन घटना से जुड़ा हुआ है । होली के पीछे भी एक ऐसी ही प्राचीन घटना है जो आज से कई लाख वर्ष पहले सत्ययुग (सतयुग) में घटित हुई थी।
होली के पीछे की घटना :-
उस समय हिरण्यकश्यप नाम का एक दैत्यराजा था । वह स्वयं को परमात्मा कहकर अपनी प्रजा से कहता था कि वह केवल उसी की पूजा करें । प्रजा क्या करती वह डर कर उसी की उपासना करती । उसका पुत्र प्रह्लाद, जिसे कभी नारद ने आकर विष्णु का मंत्र जपने की प्रेरणा दी थी, वही अपने पिता की राय न मानकर रामनाम का जप करता था। ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’, उसका प्रिय मंत्र था।
प्रह्लाद एक पावन आत्मा था जो भगवान विष्णु का भक्त था जबकि उसके पिता चाहते थे कि प्रह्लाद भी उसकी पूजा करे। लेकिन भक्त प्रह्लाद को ये गवारा नहीं था और वह सदा भगवान विष्णु की ही पूजा करता था । इससे नाराज होकर उसके पिता ने उसको आग से जलाकर मारने की योजना बनाई । उसने अपनी बहन होलिका से कहा कि वो प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे क्योंकि होलिका को भगवान से ये वरदान मिला था कि आग उसे जला नहीं सकता , अपने भाई की बात मान होलिका आग में बैठी परंतु प्रह्लाद को इस आग से कोई नुकसान नहीं हुआ बल्कि होलिका ही इस आग में जलकर खाक हो गई । इसी कथा से होली उत्सव का जन्म हुआ।
खुशियां और उल्लास :-
होली के रंग खुशियां और उल्लास बिखेरते हैं । मस्ती और प्रेम का यह पर्व हमें आपस में जोड़ता है , रिश्तों में प्रेम के गहरे रंग भरता है । होली उमंगों , मस्ती , उत्साह और स्नेह से भरपूर त्योहार है । जीवन में ऊर्जा का संचार करने वाला रंगोत्सव राग और रंग का त्योहार है । राग का अर्थ है संगीत और रंग का अर्थ है जीवन में खुशियों के अनन्यतम पहलू । इस ऋतु में जीवन और प्रकृति दोनों ही अपने आकर्षक रूप में होते हैं , संपूर्ण सृष्टि उल्लास से परिपूर्ण होती है । होली पर मात्र रंग और गुलाल ही नहीं उड़ते बल्कि खुशियों की फुहारें भी छूटती है । होली की टोलियां मस्ती में झूमती हुई वातावरण में हर्षोल्लास घोलती हैं। होली नाचने-गाने और धूम मचाने का त्योहार है।
भारतीय संस्कृति :-
रंगोत्सव हमारी भारतीय संस्कृति का सबसे खूबसूरत रंग है , जो हमारी जड़ों में जुड़ा है । इसका प्रमाण हमारी पौराणिक पुस्तकों और कथाओं में मिलता है । होली राधा-कृष्ण के प्रेम का प्रतीक है । राधा-माधव की अमर प्रेम कहानी इस त्योहार को अद्वितीय बना देती है । होली शिव-पार्वती के आलौकिक प्रेम को दर्शाती है । कामदेव को त्रिनेत्र से भस्म करने के पश्चात शिवजी ने पार्वती को पत्नी रूप में स्वीकार किया , माना जाता है कि होलिका दहन की आग्नि , वासना को जला देती है | बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है | पूतना वध की खुशी में भी होली मनाई जाती है । भक्त प्रह्लाद की कथा विश्वास और आस्था का मार्ग प्रदर्शित करती है । प्रह्लाद का अर्थ होता है आनंद , जो संदेश देता है- आनंद के साथ धर्मपथ पर चलते रहने का । ऐतिहासिक पुस्तकों और चित्रों में अकबर का जोधाबाई के साथ , जहांगीर का नूरजहां के साथ , बहादुर शाह जफर का अपने मंत्रियों के साथ होली खेलने का उल्लेख मिलता है।
एकता का त्योहार :-
एकता का त्योहार होली सच्चे अर्थों में भारतीय संस्कृति का प्रतीक है , जिसके रंग अनेकता में एकता को दर्शाते हैं । होली जात-पात और ऊंच-नीच की भावना से बहुत दूर , प्रेम, इंसानियत, भाईचारे का त्योहार है । होली का रंग और उत्साह देश की सीमाएं लांघकर विदेशों तक पहुंचा है । दूर-दूर से विदेशी मेहमान हमारे देश में होली मनाने आते हैं । लोग एक-दूसरे को प्रेम-स्नेह की गुलाल लगाते हैं, सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है , लोकगीत गाए जाते हैं , लोग गले मिलकर एक दूसरे का मुंह मीठा कराते हैं।
मस्ती और नोक-झोंक :-
मस्ती और नोक-झोंक का भी पर्व है। यह वह अवसर होता है, जब रिश्तों में दोस्ती का रंग घुल जाता है। देवर-भाभी और जीजा-साली जैसे रिश्ते ही नहीं बल्कि बड़े और छोटे सब मिलकर होली के हुड़दंग में शामिल होते हैं । एक-दूसरे के साथ शरारत करते हैं । यह त्योहार सभी को प्रेम और मस्ती के रिश्ते में बांध देता है । परायों को अपना बना देता है। ‘बुरा ना मानो होली है’ की तर्ज पर सारी शरारतें और नोक-झोंक माफ होती है ।