रस्सी कच्चे धागे की , खींच रही मैं नाव । जाने कब सुन मेरी पुकार , करें देव भवसागर पार । पानी टपके कच्चे सकोरे , व्यर्थ प्रयास हो रहे मेरे । जी में उठती रह - रह हूक , घर जाने की चाह है घेरे ।
1.कवयित्री द्वारा प्रभु प्राप्ति के लिए किए गए प्रयास क्यों व्यर्थ हो रहें है ?
2. जीवन रूपी भवसागर पार करने के लिए कवयित्री ने क्या आवश्यक बताया ?
3 . कवयित्री के मन में बार - बार हुक क्यों उठती है ?
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