रस्सी कच्चे धागे की, खींच रही मैं नाव।
जाने कब सुन मेरी पुकार, करें देव भवसागर पार।
पानी टपके कच्चे सकोरे, व्यर्थ प्रयास हो रहे मेरे।
जी में उठती रह-रह हूक, घर जाने की चाह है घेरे।।
Answers
प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री ने नाव की तुलना अपनी जिंदगी से करते हुए कहा है , वह अपनी सांसो की तुलना कच्ची डोरी से की है ,की वे इसे कच्ची डोरी यानी साँसों द्वारा चला रही हैं। यह जो सांसे है यह कब बंद हो जाएगी किसी को पता नहीं है | वह उस समय का इंतजार कर रही है , कब प्रभु उसकी पुकार सुन सुनेंगे और ज़िन्दगी से पर करेंगे |
अपने शरीर की तुलना मिट्टी के कच्चे ढांचे से करते हुए कहा की उसे नित्य पानी टपक रहा है यानी प्रत्येक दिन उनकी उम्र काम होती जा रही है। प्रभु से मिलने के सारे प्रयास व्यर्थ होते जा रहे है | मन में प्रभु से मिलने की चाह के लिए व्याकुल होते जा रही है , भक्त इस उम्मीद से ये सब कर रहा है कि कभी तो भगवान उसकी पुकार सुनेंगे और उसे भवसागर से पार लगायेंगे।
Answer:
इसमें कवित्री कह रही है कि मनुष्य जीवन कच्चे धागे के समान नश्वर है। उसी धागे के सहारे में इस भक्तों की नया को खींच रही हूं। मेरे भगवान मेरी पुकार ना जाने कब सुनेंगे और मुझे संसार रूपी सागर से पार कब कर देंगे। मुझे भव बंधन से मुक्त कर देंगे।
कच्चे धागे से बने रस्सी पर समय रूपी पानी की बूंदे निरंतर गिरती जा रही हैं अर्थात इस नश्वर जीवन में से समय निरंतर निकलता जा रहा है, ईश्वर की प्राप्ति के सभी प्रयास व्यर्थ होते जा रहे हैं। मेरे मन में भगवान को पाने की तड़प बराबर हिलोरे ले रही हैं। मैं भगवान को प्राप्त करना चाहती हूं।
Explanation:
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