रस शास्त्र के रचनाकार के नाम
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⚡काव्य-प्रकाश"
⚡रस गंगाधर"
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भरत ने नाट्यशास्त्र में मूलतः नौ रसों को ही मान्यता दी। भक्ति को भाव माना जाय या रस इस पर काव्यशास्त्रियों ने किंचित् विवेचन किया। मम्मट ने सर्वप्रथम "काव्य-प्रकाश" में भगवद्-विषयक रति को स्वतंत्र भाव की संज्ञा दी। आगे चलकर पंडितराज जगन्नाथ ने "रस गंगाधर" में इस मान्यता पर प्रश्नचिह्न लगाया।
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