Hindi, asked by jihariom23, 7 months ago

रसखान की भक्ति भावना पर प्रकाश डालें​

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Answered by pragatipandey564
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Answer:

हिन्दी-साहित्य का भक्ति-युग (संवत 1375 से 1700 वि0 तक) हिन्दी का स्वर्ण युग माना जाता है। इस युग में हिन्दी के अनेक महाकवियों –विद्यापति, कबीरदास, मलिक मुहम्मद जायसी, सूरदास, नंददास, तुलसीदास, केशवदास, रसखान आदि ने अपनी अनूठी काव्य-रचनाओं से साहित्य के भण्डार को सम्पन्न किया। इस युग में सत्रहवीं शताब्दी का स्थान भक्ति-काव्य की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। सूरदास, मीराबाई, तुलसीदास, रसखान आदि की रचनाओं ने इस शताब्दी के गौरव को बढ़ा दिया है। भक्ति का जो आंदोलन दक्षिण से चला वह हिन्दी-साहित्य के भक्तिकाल तक सारे भारत में व्याप्त हो चुका था। उसकी विभिन्न धाराएं उत्तर भारत में फैल चुकी थीं। दर्शन, धर्म तथा साहित्य के सभी क्षेत्रों में उसका गहरा प्रभाव था। एक ओर सांप्रदायिक भक्ति का ज़ोर था, अनेक तीर्थस्थान, मंदिर, मठ और अखाड़े उसके केन्द्र थे। दूसरी ओर ऐसे भी भक्त थे जो किसी भी तरह की सांप्रदायिक हलचल से दूर रह कर भक्ति में लीन रहना पसंद करते थे। रसखान इसी प्रकार के भक्त थे। वे स्वच्छंद भक्ति के प्रेमी थे।

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Answered by jitumahi898
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भक्ति कवि रसखान का जन्म सन १५४८ को माना जाता है। सुजान रसखान और प्रेमवातिका उनकी प्रमुख कृतियां है। प्रमुख्तः रसखान एक कृष्ण भक्त थे इसलिए उनकी जादतर रचनाओं में कृष्ण लीला और उनकी भक्ति की भावनाएं मिलती है। उनकी रचनाओं में ब्रजभाषा का एक मनोरम दृश्य मिलता है। उनकी भक्ति और प्रेम भाव की रचनाओं में प्रमुख पंकितियां इस प्रकार है

प्रेम प्रेम सब कोऊ कहत, प्रेम न जानत कोई।

को जन जाने प्रेम तो, मारे जगत क्यों रोई।

उक्त पंक्ति के अनुसार यह समझा जा सकता है कि रसखान एक भक्ति भावना वाले कवि थे जो कृष्ण भक्ति में लीन गोपियों और राधा की रचनाओं का मनोरम रूप लिखते थे।

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