Rashtra ke nirman mein vidyarthiyon ka mahatva
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राष्ट्र के प्रति विद्यार्थी का योगदान बहुत बड़ा और विस्तृत भी है। वे अपने योगदान के द्वारा राष्ट्र को उन्नत और समृद्ध बना सकते हैं। राष्ट्र के प्रति विद्यार्थी तभी योगदान कर सकता है, जब वह अपनी निष्ठा और सत्याचरण को श्रेष्ठ और महान बनाकर इस कार्य क्षेत्र में उतरता है। राष्ट्र के प्रति विद्यार्थीयों का कर्म क्षेत्र बहुत ही अद्भुत और अनुपम है, क्योंकि वह शिक्षा ग्रहण करते हुए भी समाज और राष्ट्र के हित के प्रति अपना अधिक से अधिक योगदान दे सकता है। यह सोचते हुए यह विचित्र आभास होता है कि शिक्षा और राजनीति दोनों पहलुओं के लेकर विद्यार्थी कैसे आगे बढ़ सकता है। क्योंकि विद्या और राजनीति का सम्बन्ध परस्पर भिन्न और विपरीत है। अतएव विद्यार्थी का अपने समाज और राष्ट्र के प्रति योगदान देना और इसका निर्वाह करना अत्यन्त विकट औेर दुष्कर कार्य है। फिर एक समाज चिन्तक और राष्ट्रभक्त विद्यार्थी विद्याध्ययन करते हुए भी अपना कोई न कोई योगदान अवश्य दे सकता है। अगर ऐसा कोई विद्यार्थी करने में अपनी योग्यता का परिचय देता है, तो निश्चय ही वह महान राष्ट्र-धर्मी, राष्ट्र का नियामक और राष्ट्र नायक हो सकता है।
विद्यार्थियों को अपने राष्ट्र ओर समाज के प्रति बहुत ही दिव्य और अनोखा योगदान होता है। इसलिए विद्यार्थियों को अपने राष्ट्र के प्रति योगदान देने के लिए अपनी शिक्षा का पूर्णरूप से निर्वाह करना चाहिए। इसके लिए उन्हें अपने उदेश्य के प्रति जागरूक होना चाहिए।
शिक्षा के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट उपलब्धियों को अर्जित करके ही विद्यार्थी राष्ट्र और समाज के प्रति कर्त्तव्यनिष्ठ हो सकता है। विद्यार्थी को एक आदर्श और कर्त्तव्यनिष्ठता का पाठ अच्छी तरह से याद करके ही राष्ट्र और समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्वों को निभाना चाहिए, अन्यथा वह न इधर का रहेगा और न उधर का ही रहेगा। एक चेतनाशील विद्यार्थी ही राष्ट्र और समाज के प्रति उत्तरदायी हो सकता है, जबकि लापवराह विद्यार्थी राष्ट्र के प्रति गद्दार और राष्ट्रदोही होता है। राष्ट्र और समाज को एकरूप देने के लिए आदर्श विद्यार्थी महान राष्ट्र नायकों और राष्ट्र की महान विभूतियों की जीवनी को सिद्धान्ततः अपनाते हुए ही राष्ट्र निर्माण की दिशा में अग्रसर हो सकता है। अतएव राष्ट्र निर्माण के प्रति विद्यार्थी का योगदान सर्वथा महान और उच्च होता है।
राष्ट्र के प्रति योगदान देने वाले विद्यार्थी को केवल नेतागिरी या लच्छेदार वाक्यों का वाचन नहीं करना चाहिए, अपितु उसे सब प्रकार के कार्यों का अनुभव सहित और ढंग से होना चाहिए। अपने राष्ट्र के धर्म और संस्कृति का रक्षक और हितैषी विद्यार्थी इसकी शान-आन पर मर मिटने के लिए हाथ में प्राणों को लेकर ही राष्ट्र के प्रति योगदान देने में सबल और समर्थ हो सकता है।