Hindi, asked by radhapalradhapal0427, 7 months ago

Rashtra Nirman main nari ka yogdan nibandh​

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Answered by gaytrigupta120
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Answer:

जब भारतीय ऋषियों ने अथर्ववेद में ‘माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः’ (अर्थात भूमि मेरी माता है और हम इस धरा के पुत्र हैं।) की प्रतिष्ठा की तभी सम्पूर्ण विश्व में नारी-महिमा का उद्घोष हो गया था। नेपोलियन बोनापार्ट ने नारी की महत्ता को बताते हुए कहा था कि -‘मुझे एक योग्य माता दे दो, मैं तुमको एक योग्य राष्ट्र दूंगा।’

भारतीय जन-जीवन की मूल धुरी नारी (माता) है। यदि यह कहा जाय कि संस्कृति, परम्परा या धरोहर नारी के कारण ही पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तान्तरित होती रही है, तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी। जब-जब समाज में जड़ता आयी है, नारी शक्ति ने ही उसे जगाने के लिए, उससे जूझने के लिए अपनी सन्तति को तैयार करके, आगे बढ़ने का संकल्प दिया है।

 

कौन भूल सकता है माता जीजाबाई को, जिसकी शिक्षा-दीक्षा ने शिवाजी को महान देशभक्त और कुशल योद्धा बनाया। कौन भूल सकता है पन्ना धाय के बलिदान को पन्नाधाय का उत्कृष्ट त्याग एवं आदर्श इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। वह उच्च कोटि की कर्तव्य

Explanation:

Answered by Yuvrajrocks13
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भारतीय जन-जीवन की मूल धुरी नारी (माता) है। यदि यह कहा जाय कि संस्कृति, परम्परा या धरोहर नारी के कारण ही पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तान्तरित होती रही है, तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी। जब-जब समाज में जड़ता आयी है, नारी शक्ति ने ही उसे जगाने के लिए, उससे जूझने के लिए अपनी सन्तति को तैयार करके, आगे बढ़ने का संकल्प दिया है।

कौन भूल सकता है माता जीजाबाई को, जिसकी शिक्षा-दीक्षा ने शिवाजी को महान देशभक्त और कुशल योद्धा बनाया। कौन भूल सकता है पन्ना धाय के बलिदान को पन्नाधाय का उत्कृष्ट त्याग एवं आदर्श इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। वह उच्च कोटि की कर्तव्य परायणता थी। अपने बच्चे का बलिदान देकर राजकुमार का जीवन बचाना सामान्य कार्य नहीं। हाड़ी रानी के त्याग एवं बलिदान की कहानी तो भारत के घर-घर में गायी जाती है। रानी लक्ष्मीबाई, रजिया सुल्ताना, पद्मिनी और मीरा के शौर्य एवं जौहर एवं भक्ति ने मध्यकाल की विकट परिस्थितियों में भी अपनी सुकीर्ति का झण्डा फहराया। कैसे कोई स्मरण न करे उस विद्यावती का जिसका पुत्र फांसी के तख्ते पर खड़ा था और मां की आंखों में आंसू देखकर पत्रकारों ने पूछा कि एक शहीद की मां होकर आप रो रही हैं तो विद्यावती का उत्तर था कि ‘मैं अपने पुत्र की शहीदी पर नहीं रो रही, कदाचित् अपनी कोख पर रो रही हूं कि काश मेरी कोख ने एक और भगत सिंह पैदा किया होता, तो मैं उसे भी देश की स्वतंत्रता के लिए समर्पित कर देती।’ ऐसा था भारतीय माताओं का आदर्श। ऐसी थी उनकी राष्ट्र के प्रति निष्ठा।

परिवार के केन्द्र में नारी है। परिवार के सारे घटक उसी के चतुर्दिक घूमते हैं, वहीं पोषण पाते हैं और विश्राम। वही सबको एक माला में पिरोये रखने का प्रयास करती है। किसी भी समाज का स्वरूप वहां की नारी की स्थिति पर निर्भर करता है। यदि उसकी स्थिति सुदृढ़ एवं सम्मानजनक है तो समाज भी सुदृढ़ एवं मजबूत होगा। भारतीय महिला सृष्टि के आरंभ से अनन्त गुणों की आगार रही है।

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