Rashtra nirman mein nari ka yogdan vishay par anuched
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हमारे देश में नारी को देवी, अबला, श्रद्धा और पूज्या जैसे नामों से सम्बोधित करने की परम्परा अत्यंत पुराने समय से चली आ रही है। नारी के लिए इस प्रकार के सम्बोधन का प्रयोग करके हमने उसे पूजा की वस्तु बना दिया या फिर उसे अबला कहकर संपत्ति बना दिया। उसका एक रूप और भी है जिसका स्मरण हम कभी- करते हैं और वह रूप है शक्ति का। यही वह रूप है जिसको हमारा पुरुषप्रधान समाज अपनी हीन मानसिकता के कारण उजागर नहीं करना चाहता। यही कारण है की हमारे सामने यह प्रश्न बार-बार आता है की आखिर नारी का समाज के या राष्ट्र के निर्माण में क्या योगदान है ? जो नारी हमें जन्म देकर इस लायक बनाती है की हम जीवन में कुछ कर सकें, क्या उसी नारी के ऊपर प्रश्न चिन्ह लगा देना सही है ?
नारी का माँ का रूप समाज निर्माण और राष्ट्र के विकास में सहायक नहीं है क्या। बहन के रूप में पुरुष को सदा अपना स्नेह प्रदान करना क्या समाज निर्माण में सहायक नहीं है ? पत्नी के रूप में घर-गृहस्थी की देखभाल करना और पूरे परिवार को संभालना क्या काम महत्वपूर्ण है ? वर्तमान में तो नारी पुरुषों के समान ही जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपना कौशल और प्रतिभा दिखा रहीं हैं। आज महिलायें माउंट एवरेस्ट फतह कर रहीं हैं, कल्पना चावला जैसे महिलाओं ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में नाम रौशन किया। जिस देश में इंदिरा गांधी जैसी महिला प्रधानमन्त्री हुई, प्रतिभा देवी सिंह पाटिल जैसी नारी जिस देश में राष्ट्रपति बनीं, क्या उसी देश में नारी के योगदान पर प्रश्न उठाना चाहिए ? भारत ही नहीं सम्पूर्ण विश्व में ऐसा कोई देश न होगा जहां नारी के मजबूत कदम न पड़े हों। तो फिर ऐसा कौन का योगदान हैं जिसकी अपेक्षा हम नारी से कर रहे हैं ?
अगर भारत का ही इतिहास देखें तो पता चलेगा की नारी प्राचीन काल से ही राष्ट्र निर्माण में सहायक रहीं हैं और आज भी सहायक हैं। वैदिक सभ्यता के निर्माण में हम गार्गी, कपिला, अरुंधति और मैत्रेयी जैसी विदुषी नारियों के योगदान को भूल नहीं सकते। पौराणिक काल में राजा दशरथ के युद्ध के समय उनके सारथी का काम करने वाली उनकी पत्नी कैकेयी द्वारा रथचक्र की कील निकल जाने पर अपनी अंगुली से कील कील को ठोककर उनके रथ को विमुख न होने देना क्या राष्ट्र सेवा नहीं थी ?
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