Raskhan ka savaiya aur uska arth in hindi
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मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।
जौ पसु हौं तो कहा बस मेरो चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥
पाहन हौं तो वही गिरि को जो कियो हरिछत्र पुरंदर धारन।
जौ खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदी कूल कदंब की डारन।
Meaning- यहाँ पर रसखान ने ब्रज के प्रति अपनी श्रद्धा का वर्णन किया है। चाहे मनुष्य का शरीर हो या पशु का; हर हाल में ब्रज में ही निवास करने की उनकी इच्छा है। यदि मनुष्य हों तो गोकुल के ग्वालों के रूप में बसना चाहिए। यदि पशु हों तो नंद की गायों के साथ चरना चाहिए। यदि पत्थर हों तो उस गोवर्धन पहाड़ पर होना चाहिए जिसे कृष्ण ने अपनी उंगली पर उठा लिया था। यदि पक्षी हों तो उन्हं यमुना नदी के किनार कदम्ब की डाल पर बसेरा करना पसंद हैं।
जौ पसु हौं तो कहा बस मेरो चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥
पाहन हौं तो वही गिरि को जो कियो हरिछत्र पुरंदर धारन।
जौ खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदी कूल कदंब की डारन।
Meaning- यहाँ पर रसखान ने ब्रज के प्रति अपनी श्रद्धा का वर्णन किया है। चाहे मनुष्य का शरीर हो या पशु का; हर हाल में ब्रज में ही निवास करने की उनकी इच्छा है। यदि मनुष्य हों तो गोकुल के ग्वालों के रूप में बसना चाहिए। यदि पशु हों तो नंद की गायों के साथ चरना चाहिए। यदि पत्थर हों तो उस गोवर्धन पहाड़ पर होना चाहिए जिसे कृष्ण ने अपनी उंगली पर उठा लिया था। यदि पक्षी हों तो उन्हं यमुना नदी के किनार कदम्ब की डाल पर बसेरा करना पसंद हैं।
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नमस्ते मित्र!
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प्रस्तुत कविता महाकवि श्री रसखान जी द्वारा लिखित हैं । इस कविता में रसखान कवि कृष्ण और कृष्ण के भूमीस्थल के प्रति समर्पण भाव व्यक्त किया है ।
रसखान का जन्मदिन सन् 1548 में हुआ माना जाता है । उनका मूल नाम सैयद इब्राहीम था । वे दिल्ली के आस - पास रहने वाले थे ।
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धन्यवाद. !
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प्रस्तुत कविता महाकवि श्री रसखान जी द्वारा लिखित हैं । इस कविता में रसखान कवि कृष्ण और कृष्ण के भूमीस्थल के प्रति समर्पण भाव व्यक्त किया है ।
रसखान का जन्मदिन सन् 1548 में हुआ माना जाता है । उनका मूल नाम सैयद इब्राहीम था । वे दिल्ली के आस - पास रहने वाले थे ।
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