rastrabhasha hindi anuched
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गांधीजी भारत की स्वाधीनता के साथ-साथ राजभाषा, राष्ट्रभाषा अथवा सम्पर्क भाषा के रूप में किसी भारतीय भाषा को प्रतिष्ठित करना चाहते थे । उन्होंने पूरे देश का दौरा करके यह निष्कर्ष निकाला कि हिन्दी ही एक ऐसी भाषा हो सकती है जिसे राजभाषा के पद पर प्रतिष्ठित करने में कोई परेशानी नहीं होगी ।
वे चाहते थे कि आजादी मिलने के बाद देश में राष्ट्रीय सरकार का काम किसी भारतीय भाषा में होना चाहिए । उन्होंने अपने संकल्प को पूरा करने के लिए दक्षिण भारत में हिन्दी प्रचार सभा की स्थापना की ताकि लोग हिन्दी पढ़ें और हिन्दी बोलने, लिखने-समझने में उन्हें कोई कठिनाई न हो ।
वे चाहते थे कि देश का शासन देश की भाषा में चलना चाहिए । भारत जब स्वाधीन हुआ और हमारे देश का नया संविधान बना तब गांधीजी की कही बात को लोगों ने याद किया और संविधान के अनुच्छेद 343(1) में लिखा गया कि, ”संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी ।”
संविधान में यह भी कहा गया कि 26 जनवरी, 1950 को नया संविधान लागू होने के 15 वर्ष बाद हिन्दी को समग्र रूप से राजभाषा का पद मिल जाएगा और जिन कामों के लिए अंग्रेजी का प्रयोग होता रहा है, उन सभी के लिए हिन्दी का प्रयोग शुरू कर दिया जाएगा ।
संविधान में उक्त पंक्तियों के लिखे जाने से पूर्व राजर्षि टण्डन, सेठ गोविन्द दास जैसे हिन्दी भक्तों ने इसका विरोध किया था और कहा था कि यदि हिन्दी को अभी से लागू नहीं किया गया तो कालान्तर में कई परेशानियां आएंगी और हिन्दी कभी भी पूरी तरह राजभाषा नहीं बन पाएगी ।
उस समय नेहरू जैसे कुछ नेताओं ने इसका विरोध किया था और हिन्दी को राजभाषा बनाने का प्रश्न 15 वर्ष के लिए टाल दिया गया था । नेहरू जी नहीं रहे, किन्तु उनके बाद प्रधानमंत्री बने श्री लाल बहादुर शास्त्री ने संसद में नेहरू जी के आश्वासन को कार्यरूप में बदलने के लिए एक बिल पेश किया, जो पास होकर कालान्तर में राजभाषा अधिनियम 1963 के नाम से जाना जाता है ।
यह अधिनियम इतना खतरनाक सिद्ध हुआ कि आजादी के 64 वर्ष बीत जाने पर भी हिन्दी पूरी तरह राजभाषा नहीं बन पाई है । इस अधिनियम में उल्लेख किया गया है कि अंग्रेजी तब तक राजभाषा बनी रहेगी, जब तक दक्षिण भारत के लोग उसके हटाने की मांग नहीं करेंगे ।
हिन्दी के व्यापक प्रयोग के लिए सरकारी प्रयत्न जारी है । जिसकी वजह से सन् 1976 में सरकार ने बारह राजभाषा नियम तैयार किए थे । इन नियमों के अनुसार कुछ कामों के लिए हिन्दी का प्रयोग अनिवार्य कर दिया गया है ।
भारत सरकार द्वारा गठित संसदीय समितियों के सदस्य समय-समय पर केन्द्र सरकार के कार्यालयों का निरीक्षण करते हैं । इस प्रकार के निरीक्षणों से उन सभी लोगों को काफी प्रोत्साहन मिलता है जो हिन्दी का प्रयोग करने के लिए प्रयत्नशील हैं
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गांधीजी भारत की स्वाधीनता के साथ-साथ राजभाषा, राष्ट्रभाषा अथवा सम्पर्क भाषा के रूप में किसी भारतीय भाषा को प्रतिष्ठित करना चाहते थे । उन्होंने पूरे देश का दौरा करके यह निष्कर्ष निकाला कि हिन्दी ही एक ऐसी भाषा हो सकती है जिसे राजभाषा के पद पर प्रतिष्ठित करने में कोई परेशानी नहीं होगी ।
वे चाहते थे कि आजादी मिलने के बाद देश में राष्ट्रीय सरकार का काम किसी भारतीय भाषा में होना चाहिए । उन्होंने अपने संकल्प को पूरा करने के लिए दक्षिण भारत में हिन्दी प्रचार सभा की स्थापना की ताकि लोग हिन्दी पढ़ें और हिन्दी बोलने, लिखने-समझने में उन्हें कोई कठिनाई न हो ।
वे चाहते थे कि देश का शासन देश की भाषा में चलना चाहिए । भारत जब स्वाधीन हुआ और हमारे देश का नया संविधान बना तब गांधीजी की कही बात को लोगों ने याद किया और संविधान के अनुच्छेद 343(1) में लिखा गया कि, ”संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी ।”
संविधान में यह भी कहा गया कि 26 जनवरी, 1950 को नया संविधान लागू होने के 15 वर्ष बाद हिन्दी को समग्र रूप से राजभाषा का पद मिल जाएगा और जिन कामों के लिए अंग्रेजी का प्रयोग होता रहा है, उन सभी के लिए हिन्दी का प्रयोग शुरू कर दिया जाएगा ।
संविधान में उक्त पंक्तियों के लिखे जाने से पूर्व राजर्षि टण्डन, सेठ गोविन्द दास जैसे हिन्दी भक्तों ने इसका विरोध किया था और कहा था कि यदि हिन्दी को अभी से लागू नहीं किया गया तो कालान्तर में कई परेशानियां आएंगी और हिन्दी कभी भी पूरी तरह राजभाषा नहीं बन पाएगी ।
उस समय नेहरू जैसे कुछ नेताओं ने इसका विरोध किया था और हिन्दी को राजभाषा बनाने का प्रश्न 15 वर्ष के लिए टाल दिया गया था । नेहरू जी नहीं रहे, किन्तु उनके बाद प्रधानमंत्री बने श्री लाल बहादुर शास्त्री ने संसद में नेहरू जी के आश्वासन को कार्यरूप में बदलने के लिए एक बिल पेश किया, जो पास होकर कालान्तर में राजभाषा अधिनियम 1963 के नाम से जाना जाता है ।
यह अधिनियम इतना खतरनाक सिद्ध हुआ कि आजादी के 64 वर्ष बीत जाने पर भी हिन्दी पूरी तरह राजभाषा नहीं बन पाई है । इस अधिनियम में उल्लेख किया गया है कि अंग्रेजी तब तक राजभाषा बनी रहेगी, जब तक दक्षिण भारत के लोग उसके हटाने की मांग नहीं करेंगे ।
हिन्दी के व्यापक प्रयोग के लिए सरकारी प्रयत्न जारी है । जिसकी वजह से सन् 1976 में सरकार ने बारह राजभाषा नियम तैयार किए थे । इन नियमों के अनुसार कुछ कामों के लिए हिन्दी का प्रयोग अनिवार्य कर दिया गया है ।
भारत सरकार द्वारा गठित संसदीय समितियों के सदस्य समय-समय पर केन्द्र सरकार के कार्यालयों का निरीक्षण करते हैं । इस प्रकार के निरीक्षणों से उन सभी लोगों को काफी प्रोत्साहन मिलता है जो हिन्दी का प्रयोग करने के लिए प्रयत्नशील हैं ।
pls mark as brainliest