रवींद्रनाथ टैगोर पर एक अनुच्छेद
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म देवेन्द्रनाथ ठाकुर और शारदा देवी के सन्तान के रूप में ७ मई १८६१ को कोलकाता के जोड़ासाँको ठाकुरबाड़ी में हुआ। उनकी आरम्भिक शिक्षा प्रतिष्ठित सेंट जेवियर स्कूल में हुई। उन्होंने बैरिस्टर बनने की इच्छा में १८७८ में इंग्लैंड के ब्रिजटोन में पब्लिक स्कूल में नाम लिखाया फिर लन्दन विश्वविद्यालय में कानून का अध्ययन किया लेकिन १८८० में बिना डिग्री प्राप्त किए ही स्वदेश वापस लौट आए। सन् १८८३ में मृणालिनी देवी के साथ उनका विवाह हुआ।[2]
टैगोर की माता का निधन उनके बचपन में हो गया था और उनके पिता व्यापक रूप से यात्रा करने वाले व्यक्ति थे, अतः उनका लालन-पालन अधिकांशतः नौकरों द्वारा ही किया गया था। टैगोर परिवार बंगाल पुनर्जागरण के समय अग्रणी था उन्होंने साहित्यिक पत्रिकाओं का प्रकाशन किया; बंगाली और पश्चिमी शास्त्रीय संगीत एवं रंगमंच और पटकथाएं वहां नियमित रूप से प्रदर्शित हुईं थीं। टैगोर के पिता ने कई पेशेवर ध्रुपद संगीतकारों को घर में रहने और बच्चों को भारतीय शास्त्रीय संगीत[3] पढ़ाने के लिए आमंत्रित किया था। टैगोर के सबसे बड़े भाई द्विजेंद्रनाथ एक दार्शनिक और कवि थे एवं दूसरे भाई सत्येंद्रनाथ कुलीन और पूर्व में सभी यूरोपीय सिविल सेवा के लिए पहले भारतीय नियुक्त व्यक्ति थे। एक भाई ज्योतिरिंद्रनाथ, संगीतकार और नाटककार थे एवं इनकी बहिन स्वर्णकुमारी उपन्यासकार थीं। ज्योतिरिंद्रनाथ की पत्नी कादंबरी देवी सम्भवतः टैगोर से थोड़ी बड़ी थीं व उनकी प्रिय मित्र और शक्तिशाली प्रभाव वाली स्त्री थीं जिन्होंने १८८४ में अचानक आत्महत्या कर ली। इस कारण टैगोर और इनका शेष परिवार कुछ समय तक काफ़ी समस्याओं से घिरा रहा था।[4
टैगोर की माता का निधन उनके बचपन में हो गया था और उनके पिता व्यापक रूप से यात्रा करने वाले व्यक्ति थे, अतः उनका लालन-पालन अधिकांशतः नौकरों द्वारा ही किया गया था। टैगोर परिवार बंगाल पुनर्जागरण के समय अग्रणी था उन्होंने साहित्यिक पत्रिकाओं का प्रकाशन किया; बंगाली और पश्चिमी शास्त्रीय संगीत एवं रंगमंच और पटकथाएं वहां नियमित रूप से प्रदर्शित हुईं थीं। टैगोर के पिता ने कई पेशेवर ध्रुपद संगीतकारों को घर में रहने और बच्चों को भारतीय शास्त्रीय संगीत[3] पढ़ाने के लिए आमंत्रित किया था। टैगोर के सबसे बड़े भाई द्विजेंद्रनाथ एक दार्शनिक और कवि थे एवं दूसरे भाई सत्येंद्रनाथ कुलीन और पूर्व में सभी यूरोपीय सिविल सेवा के लिए पहले भारतीय नियुक्त व्यक्ति थे। एक भाई ज्योतिरिंद्रनाथ, संगीतकार और नाटककार थे एवं इनकी बहिन स्वर्णकुमारी उपन्यासकार थीं। ज्योतिरिंद्रनाथ की पत्नी कादंबरी देवी सम्भवतः टैगोर से थोड़ी बड़ी थीं व उनकी प्रिय मित्र और शक्तिशाली प्रभाव वाली स्त्री थीं जिन्होंने १८८४ में अचानक आत्महत्या कर ली। इस कारण टैगोर और इनका शेष परिवार कुछ समय तक काफ़ी समस्याओं से घिरा रहा था।[4
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रबीन्द्रनाथ टैगोर पर निबंध 3 (200 शब्द)
रबीन्द्रनाथ टैगोर एक महान भारतीय कवि और अपने माता-पिता के सबसे छोटे बेटे थे। बंगाल, 19वीं शताब्दी में ब्रह्म समाज के वो एक नेता थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा घर से ली जबकि इंग्लैड में उच्च शिक्षा ली। अपने औपचारिक स्कूलिंग के लिये 17 वर्ष की आयु में वो इंग्लैंड गये हालांकि पूरा नहीं कर सके। उनकी रुचि और मानवता से उनके नज़दीकी जुड़ाव ने देश की प्रति कुछ सामाजिक सुधार करने के लिये उनका ध्यान खींचा। तब उन्होंने एक स्कूल शांतिनिकेतन की शुरुआत की जहां वो शिक्षा के उपनिषद के आदर्शों का अनुसरण करते हैं। उन्होंने खुद को भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन में भी शामिल किया और अपने गैर-भावनात्मक और मनमौजी तरीकों का अनुगमन किया। गाँधीजी उनके समर्पित मित्र थे। देश के प्रति उनके आपार प्रेम को देखा गया जब देश में अंग्रेजी नीतियों के ख़िलाफ़ एक विरोध के रुप में 1919 में ब्रिटिश सरकार द्वारा दिया गया सम्मान उन्होंने वापस कर दिया था।
वो एक अच्छे लेखक थे और उन्होंने अपने पैदाइशी स्थान बंगाल में लेखन में सफलता प्राप्त की। लेखन में उनकी लगातार सफलता ने भारत के आध्यात्मिक विरासत की एक प्रसिद्ध आवाज़ बनने के लिये उनको काबिल बनाया। मनासी, सोनर तारी, गीतांजलि, गीतिमलया, बलाका आदि जैसे उनके कविताओं के कुछ अद्वितीय संस्करण हैं। कविताओं के अलावा, वो नृत्य नाटक, संगीत नाटक, निबंध, यात्रा वृतांत, आत्मकथा आदि लिखने के लिये भी प्रसिद्ध थे।
रबीन्द्रनाथ टैगोर एक महान भारतीय कवि और अपने माता-पिता के सबसे छोटे बेटे थे। बंगाल, 19वीं शताब्दी में ब्रह्म समाज के वो एक नेता थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा घर से ली जबकि इंग्लैड में उच्च शिक्षा ली। अपने औपचारिक स्कूलिंग के लिये 17 वर्ष की आयु में वो इंग्लैंड गये हालांकि पूरा नहीं कर सके। उनकी रुचि और मानवता से उनके नज़दीकी जुड़ाव ने देश की प्रति कुछ सामाजिक सुधार करने के लिये उनका ध्यान खींचा। तब उन्होंने एक स्कूल शांतिनिकेतन की शुरुआत की जहां वो शिक्षा के उपनिषद के आदर्शों का अनुसरण करते हैं। उन्होंने खुद को भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन में भी शामिल किया और अपने गैर-भावनात्मक और मनमौजी तरीकों का अनुगमन किया। गाँधीजी उनके समर्पित मित्र थे। देश के प्रति उनके आपार प्रेम को देखा गया जब देश में अंग्रेजी नीतियों के ख़िलाफ़ एक विरोध के रुप में 1919 में ब्रिटिश सरकार द्वारा दिया गया सम्मान उन्होंने वापस कर दिया था।
वो एक अच्छे लेखक थे और उन्होंने अपने पैदाइशी स्थान बंगाल में लेखन में सफलता प्राप्त की। लेखन में उनकी लगातार सफलता ने भारत के आध्यात्मिक विरासत की एक प्रसिद्ध आवाज़ बनने के लिये उनको काबिल बनाया। मनासी, सोनर तारी, गीतांजलि, गीतिमलया, बलाका आदि जैसे उनके कविताओं के कुछ अद्वितीय संस्करण हैं। कविताओं के अलावा, वो नृत्य नाटक, संगीत नाटक, निबंध, यात्रा वृतांत, आत्मकथा आदि लिखने के लिये भी प्रसिद्ध थे।
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