Hindi, asked by bornaliboruahbkt123, 14 days ago

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Answered by lbsingh8874088411
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हमारे समाज में कहा जाता है कि लड़के और लड़कियां एक समान हैं, परंतु व्यवहारिक रूप में लोग इसे अपने पर लागू नहीं करते हैं। कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो आज भी हमारे समाज के बहुसंख्य परिवारों में यही धारणा है कि उन्हें एक अच्छी बहू तो चाहिए। पर जब अपने घर में बेटी जन्म लेती है तो ऐसा प्रतीत होता है कि दुनिया भर का बोझ उनके यहां ही आ गया हो। आखिर ऐसा क्यों? अपने ही माता-पिता बेटियों के दुश्मन बन जाते हैं। बचपन से ही उनके साथ भेदभाव शुरू हो जाता है। इस युग में एक अच्छे और बेहतर समाज की कल्पना तभी की जा सकती है जब बेटे और बेटियों मे भेद-भाव को मिटा दिया जाए। प्रसिद्ध समाज सुधारक जेम्स टासयन का कथन - वी कैन नॉट इमेजिन वेल नेशन विदाउट वुमन अर्थात हम महिलाओं के बगैर अच्छे राष्ट्र की कल्पना नहीं कर सकते हैं। परंतु समाज के लोगों को लगता है कि बेटे ही उनके लिए सबकुछ है। बेटियां उनकी ¨जदगी में कोई अहमियत नहीं रखती हैं। जैसा कि हम समाज में कई बार देखते हैं कि इस्लाम धर्म में तीन विवाह करने की इजाजत होती है। यदि वे एक कन्या के साथ विवाह करते हैं तो फिर से दूसरी कन्या के साथ विवाह कर सकते हैं। ऐसी सामाजिक मान्यता में चारों ओर से कष्ट बेटियों को ही झेलना पड़ता है। आखिर ऐसा क्यों होता है? इसपर सरकार और हमारे समाज को ¨चतन करना चाहिए। ऐसे रूढ़ीवादी पंरपरा को सरकार द्वारा बंद किया जाना चाहिए और हम सभी सामाजिक प्राणी को सरकार की सहायता करनी चाहिए। लड़कियों की दशा को सुधारने और उसे महत्व देने के लिए हरियाणा सरकार ने 14 जनवरी को बेटी की लोहड़ी नाम से एक योजना बनाई और इस योजना का उद्देश्य लड़कियों को सामाजिक और आर्थिक रूप स्वतंत्र बनाना है। लड़कियां अपने अधिकार को पा सकें और उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकें। दरअसल हमें समाज में रहते हुए यह पता चलता है कि एक औरत का दुश्मन एक औरत ही होती है जो पुरुषों के दबाव के कारण उसे कोख में मार देती हैं। परंतु आज की माताओं की सोच काफी बदली है और अपनी बेटियों को पढ़ाने का बीड़ा उठाया है। शायद यह वजह है कि आज शिक्षा के क्षेत्र में बेटे से ज्यादा बेटियों का ग्राफ बढ़ा है। आज की कई माताएं अपने बेटियों को अधिक पढ़ाकर बेहतर संस्कार के साथ-साथ उसे उच्च पदों पर आसीन भी करवा रही हैं यह सोचकर भी कि उसे अधिक दहेज नहीं देना पड़ेगा परंतु हमारे समाज के दहेज लोभियों की अभी भी सोच नहीं बदली है और वैसे लोग और भी दहेज की मांग करते है। ऐसे में उन्हें भी अपनी सोच को बदलना चाहिए। बेटियां हर क्षेत्र में बेटे से आगे जा सकती है परंतु समाज की गंदी नजर इन्हें आगे बढ़ने से रोकती है। बावजूद बेटियां आज सारी बाधाओं को पार कर आगे बढ़ने को आतुर हो रही हैं और पंख लगाकर उड़ भी रही हैं

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