Hindi, asked by sreehariraj06, 2 months ago

REPORT IN HINDI ON APJ ABDUL ​

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Answered by swathi21025
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देश के पूर्व राष्ट्रपति मिसाइल मैन एपीजे अब्दुल कलाम का निधन 27 जुलाई 2015 को मेघालय के शिलांग में हुआ था. देश हमेशा उनका आभारी रहेगा. 2020 तक भारत को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने का सपना देखने वाला ये कर्मवीर योद्धा मरते दम तक देश के लिए काम करता रहा.नई दिल्ली: देश के पूर्व राष्ट्रपति मिसाइल मैन एपीजे अब्दुल कलाम को भारत के सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न' से नवाजा जा चुका है. देश हमेशा उनका ऋणी रहेगा. एपीजे अब्दुल कलाम एक महान विचारक रहे, लेखक रहे और वैज्ञानिक भी रहे. हर क्षेत्र में उनका अहम योगदान रहा.

अब्दुल कलाम का निधन 27 जुलाई 2015 को मेघालय के शिलांग में हुआ था. ऐसे में आज उनकी पुण्यतिथि पर आइए जानते हैं उनके बारे में कुछ खास बातें और साथ ही कैसे ख़्वाब देखना और उसे पूरा करना कोई कलाम साहब की जिंदगी से सीख सकता है.

जीवन के संघर्ष से सफलता तक का सफर

अब्दुल कलाम का जन्म तमिलनाडु के रामेश्वरम में 15 अक्टूबर को हुआ था. उनका परिवार नाव बनाने का काम करता था. कलाम के पिता नाव मछुआरों को किराए पर दिया करते थे. बचपन से ही कलाम की आंखें कुछ बनने का ख़्वाब देखती थी. हालांकि उस वक्त परिस्थियां इतनी अच्छी नहीं थी. वह स्कूल से आने के बाद कुछ देर तक अपने बड़े भाई मुस्तफा कलाम की दुकान पर भी बैठते थे, जो कि रामेश्वरम् रेलवे स्टेशन पर थी. फिर दूसरे विश्व युद्ध के शुरू होने पर जब ट्रेन ने रामेश्वरम् रेलवे स्टेशन पर रूकना बंद कर दिया था, तब अख़बार के बंडल चलती ट्रेन से ही फेंक दिए जाते थे.

उनके भाई शम्सुद्दीन को एक ऐसे इन्सान की ज़रूरत थी जो अख़बारोंको घर-घर पहुंचाने में उनकी मदद कर सके, तब कलाम ने यह ज़िम्मेदारी निभाई. जब उन्होंने अपने पिता से रामेश्वरम् से बाहर जाकर पढ़ाई करने की बात कही तो उन्होंने कहा कि हमारा प्यार तुम्हें बांधेगा नहीं और न ही हमारी जरूरतें तुम्हें रोकेंगी. इस जगह तुम्हारा शरीर तो रह सकता है, लेकिन तुम्हारा मन नहीं.

इसके बाद कलाम ने 1950 में इंटरमीडिएट की पढ़ाई के लिए त्रिची के सेंट जोसेफ कालेज में दाख़िला लिया. इसके बाद उन्होंने बीएससी की. फिर अचानक उन्हें लगा कि उन्हें बीएससी नहीं करना चाहिए था. उनका सपना कुछ और था. वह इंजीनियर बनना चाहते थे. बीएससी करने के बाद उन्होंने ठान लिया कि अब वह किसी भी तरह मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग में एडमीशन लेकर रहेंगे.

कलाम का विश्वास और मेहनत ही थी कि उन्हें दाखिला मिल गया. उस वक्त एरोनॉटिकल इंजीनियरिंगकी फ़ीस 1000 रूपये थी. फ़ीस भरने को उनकी बड़ी बहन ने अपने गहने गिरवीं रखे और उन्होंने गिरवीं गहनों को अपनी कमाई से ही छुड़ाने की बात मन में ठानी. इसके बाद पढाई शुरू तो हुई लेकिन कॉलेज में जैसे-जैसे वक़्त बीतने लगा वैसे-वैसे विमानों में उनकी दिलचस्पी बढ़ने लगी. अब पायलट बनने का ख्याल दिल में आया.

जब उन्होंने इंजीनियरिंग की पढाई कर ली तो उनके सामने दो रास्ते थे. पहला एअरफ़ोर्स में पायलट बनने का ख़्वाब जो कलाम ने देखा था तो वहीं दूसरा रक्षा मंत्रालय के वैज्ञानिक बनने का. कलाम ने अपने ख्वाबों को तरजीह दी और एअरफ़ोर्स में पायलट के इन्टरव्यू के लिए दक्षिण भारत से उत्तर भारत रवाना हो गए.

इंटरव्यू में कलाम साहब ने हर प्रश्न का जवाब दिया लेकिन जब इंटरव्यू के परिणाम आए तो उनको मालूम हुआ कि जिंदगी अभी और कठीन परीक्षा लेगी. आठ लोग चुने गए और कलाम साहब का नंबर नौवां था. वह समझ गए हालात अभी मुश्किल होने वाले हैं. कलाम दिल्ली आकर एक जगह वैज्ञानिक के पद पर काम करने लगे तब उनका मासिक वेतन दो सौ पचास रूपये मात्र था. यहां वह विमान बनाने का काम करते थे. फिर तीन साल बाद ’वैमानिकी विकास प्रतिष्ठान’ का केन्द्र बंगलुरू में बनाया गया और उन्हें इस केन्द्र में भेज दिया गया.

इसके बाद उन्हें उन्हें स्वदेशी हावरक्राफ़्ट बनाने की ज़िम्मेदारी दी गई जो काफी मुश्किल मानी जाती थी. लेकिन कलाम ने यह भी कर दिखाया. उन्होंने और उनके सहयोगियों ने हावरक्राफ़्ट में पहली उड़ान भरी. रक्षा मंत्री कृष्णमेनन ने कलाम की खूब तारीफ की और कहा कि इससे भी शक्तिशाली विमान अब तैयार करो. उन्होंने वादा किया कि वह ऐसा करेंगे लेकिन जल्द कृष्णमेनन रक्षा मंत्रालय से हटा दिए गए और कलाम साबह उन्हें दोबारा कमाल कर के नहीं दिखा पाए.

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अबुल पाकिर जैनुलअब्दीन अब्दुल कलाम (अंग्रेज़ी: A P J Abdul Kalam ), (15 अक्टूबर 1931 – 27 जुलाई 2015) इन्हे मिसाइल मैन और जनता के राष्ट्रपति के नाम से जाना जाता है, भारतीय गणतंत्र के ग्यारहवें निर्वाचित राष्ट्रपति थे।[2] वे भारत के पूर्व राष्ट्रपति, जानेमाने वैज्ञानिक और अभियंता (इंजीनियर) के रूप में विख्यात थे। उन्होंने सिखाया जीवन में चाहें जैसे भी परिस्थिति क्यों न हो पर जब आप अपने सपने को पूरा करने की ठान लेते हैं तो उन्हें पूरा करके ही रहते हैं। अब्दुल कलाम मसऊदी के विचार आज भी युवा पीढ़ी को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं।

इन्होंने मुख्य रूप से एक वैज्ञानिक और विज्ञान के व्यवस्थापक के रूप में चार दशकों तक रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) संभाला व भारत के नागरिक अंतरिक्ष कार्यक्रम और सैन्य मिसाइल के विकास के प्रयासों में भी शामिल रहे। इन्हें बैलेस्टिक मिसाइल और प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी के विकास के कार्यों के लिए भारत में 'मिसाइल मैन' के रूप में जाना जाता है।[3]

इन्होंने 1974 में भारत द्वारा पहले मूल परमाणु परीक्षण के बाद से दूसरी बार 1998 में भारत के पोखरान-द्वितीय परमाणु परीक्षण में एक निर्णायक, संगठनात्मक, तकनीकी और राजनैतिक भूमिका निभाई।[4]

कलाम सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी व विपक्षी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस दोनों के समर्थन के साथ 2002 में भारत के राष्ट्रपति चुने गए।[5] पांच वर्ष की अवधि की सेवा के बाद, वह शिक्षा, लेखन और सार्वजनिक सेवा के अपने नागरिक जीवन में लौट आए। इन्होंने भारत रत्न, भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त किये।

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