History, asked by kalrashallu26, 9 months ago

Right a short brief about Birsa munda​

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Answered by davidsarah108
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Answer:

Birsa Munda was a young freedom fighter and a tribal leader, whose spirit of activism in the late nineteenth century, is remembered to be a strong mark of protest against British rule in India. Born and raised in the tribal belt around Bihar and Jharkhand, Birsa Munda’s achievements are known to be even more remarkable by virtue of the fact that he came to acquire them before he was 25. In recognition of his impact on the nationals movement, the state of Jharkhand was created on his birth anniversary in 2000.

Born on November 15, 1875, Birsa spent much of his childhood moving from one village to another with his parents. He belonged to the Munda tribe in the Chhotanagpur Plateau area. He received his early education at Salga under the guidance of his teacher Jaipal Nag. On the recommendation of Jaipal Nag, Birsa converted to Christianity in order to join the German Mission school. He, however, opted out of the school after a few years.

Explanation:

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Answered by smartyAnushka
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Answer:

बिरसा मुंडा का जन्म 1875 के दशक में छोटा नागपुर में मुंडा परिवार में हुआ था । मुंडा एक जनजातीय समूह था जो छोटा नागपुर पठार में निवास करते थे । बिरसा जी 1900 में आदिवासी लोगो को भड़काने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें 2 साल की सजा हो गई । और अंततः 9 जून 1900 मे अंग्रेजो द्वारा उन्हें एक धीमा जहर देने के कारण उनकी मौत हो गई।

सुगना मुंडा और करमी हातू के पुत्र बिरसा मुंडा का जन्म १५ नवम्बर १८७५ को झारखंड प्रदेश मेंराँची उलीहातू गाँव में हुआ था। साल्गा गाँव में प्रारम्भिक पढाई के बाद वे चाईबासा इंग्लिश मिडिल स्कूल में पढने आये। इनका मन हमेशा अपने समाज की ब्रिटिश शासकों द्वारा की गयी बुरी दशा पर सोचता रहता था। उन्होंने मुंडा लोगों को अंग्रेजों से मुक्ति पाने के लिये अपना नेतृत्व प्रदान किया। १८९४ में मानसून के छोटानागपुर में असफल होने के कारण भयंकर अकाल और महामारी फैली हुई थी। बिरसा ने पूरे मनोयोग से अपने लोगों की सेवा की।

1 अक्टूबर 1894 को नौजवान नेता के रूप में सभी मुंडाओं को एकत्र कर इन्होंने अंग्रेजो से लगान माफी के लिये आन्दोलन किया। 1895 में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और हजारीबाग केन्द्रीय कारागार में दो साल के कारावास की सजा दी गयी। लेकिन बिरसा और उसके शिष्यों ने क्षेत्र की अकाल पीड़ित जनता की सहायता करने की ठान रखी थी और अपने जीवन काल में ही एक महापुरुष का दर्जा पाया। उन्हें उस इलाके के लोग "धरती बाबा" के नाम से पुकारा और पूजा जाता था। उनके प्रभाव की वृद्धि के बाद पूरे इलाके के मुंडाओं में संगठित होने की चेतना जागी।

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