Hindi, asked by rajaryan363461, 6 months ago

S.N.
page-01
marks
1)
अपठित - गद्यांश - 10 (खण्ड - क)
संस्कृति के फैलाव का परिणाम हमारे गंभीर चिंता का विषय हैं। हमारे सीमित संशाधनों
का घोर अपव्यय हो रहा हैं। जीवन की गुणवता आलू के चिप्स से नहीं सुधरतीं। न
बहुविज्ञापित शीतल पेयों से। भले ही वे अंतर्राष्ट्रीय हों। पीजा और बर्गर कितने ही
आधुनिक हैं वो कूड़ा खाद्य। समाज में वर्गों की दूरी बढ़ रही हैं, सामाजिक सरकारों में
कमी आ रही हैं। जीवन स्तर का यह बढ़ता अंतर आक्रोश और अशांति को जन्म दे
रहा हैं। जैसे-जैसे यह दिखावे की संस्कृति फैलेगी, सामाजिक अशांति भी बढ़ेगी। हमारी
सांस्कृतिक अस्मिता का दास तो हो ही रहा हैं। हम लक्ष्य - भ्रम से भी पीड़ित है।
विकास के विराट उद्देश पीछे हट रहे हैं। हम क्रूठी तुष्टि के तात्कालिक लक्ष्यों का पीछा
कर रहे हैं। मर्यादाएँ टूट रही हैं, नैतिक मानदंड ढीले पड़ रहे हैं। व्यक्ति-केंद्रकता बढ़
रही हैं, स्वार्थ परमार्थ पर हावी हो रहा हैं। भोग की आकांक्षाएँ आसमान को छू रही हैं।
किस बिंदु पर रू के भी यह दौड़?
2
2
उपरोक्त गद्यांश ध्यानपूर्वक पढ़कर निम्नांकित प्रश्नों के उत्तर लिखें :-
1) गंभीर चिंता का विषय क्या हैं?
ii) अंतर्राष्ट्रिय पेय और खाद्य पदार्थ कड़ा खाद्य हैं, कैसे?
ifi) सामाजिक सरकारों में कमी क्यों आ रही हैं?
iv) दिखावे की संस्कृति से हमें क्या-क्या हानि हैं? किन्ही दो हानियों की चर्चा करें।
2
2​

Answers

Answered by ektagahlawat0510
1

Answer:

1) पश्चिमि संस्कृति के फैलाव का परिणाम हमारे गंभीर चिंता का विषय हैं।

ii) अंतर्राष्ट्रिय पेय और खाद्य पदार्थ कूड़ा खाद्य हैं, क्योंकि इन के सेवन से शरीर को हानि होती है ।

iii)समाज में वर्गों की दूरी बढ़ रही हैं जिस कारण सामाजिक सरकारों में

कमी आ रही हैं।

iv) 1) मर्यादाएँ टूट रही हैं, नैतिक मानदंड ढीले पड़ रहे हैं।

2) स्वार्थ परमार्थ पर हावी हो रहा हैं।

pls. mark as brainliest .

Answered by simi495285
0

Answer:

hey guy above answer is correct

Similar questions