सोभा सिंधु से कवि का आशय कया है
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नई कविता है।
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सोभा सिंधु से कवि का आशय
सोभा सिंधु से कवि का आशय में सूरदास जी ने आनन्द-उल्लास का वर्णन वात्सल्य से पुष्टरूप में किया है बढ़ई से रत्नजटित पालना बनवाया गया है, उसमें रेशम की डोरी लगी है। श्रीकृष्ण को पालने में सुलाकर यशोदा आनन्दित होती हैं। श्रीकृष्ण कभी पलक मूँद लेते हैं, कभी अधर फड़काते हैं। पालने में झुलाते समय वात्सल्यमयी यशोदा का वर्णन कवि ने इस प्रकार किया है
कृष्ण जन्म का समाचार सुनते ही ब्रज की गलियों में अपार आनन्द का समुद्र उमड़ पड़ता है जिसकी अभिव्यक्ति सूरदास ने एक ग्वालिन के मुख से की है|
आज शोभा के समुद्र का पार नहीं रहा। नन्दभवन में वह पूर्णतः भरकर अब व्रज की गलियों में उमड़ता बहता जा रहा है।आज गोकुल में जाकर देखा कि (शोभा की अधिदेवता लक्ष्मी ही) घर घर दही बेचती घूम रही है। अनेक प्रकार से बनाकर कहाँ तक कहूँ, सहस्त्रों मुखों से वर्णन करने पर भी पार नहीं मिलता है । सूरदास जी कहते हैं कि सभी ने इसी प्रकार कहा कि यशोदा जी की कोखरूपी अथाह सागर से मेरे प्रभुरूपी इन्द्रनीलमणि उत्पन्न हुई, जिसे व्रजयुवतियों ने हृदय से लगाकर पकड़ रखा है हृदय में धारण कर लिया है।