Political Science, asked by cpurnima8787, 9 months ago

सिचांई के प्रमुख साधनों का उल्लेख करें ।

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Answered by avinash3475
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भारत में सिंचाई के स्रोत

2010-11 की कृषि गणना के अनुसार भारत में कुल सिंचित क्षेत्र 6.47 करोड़ हेक्टेयर का है। इसमें से सबसे ज्यादा 45 प्रतिशत क्षेत्र में सिंचाई ट्यूबवेल से होती है जिसके बाद नहरों और कुओं का स्थान है।

सरकार 1950-51 से ही नहरों का सिंचित क्षेत्र बढ़ाने के काम को काफी महत्त्व दे रही है। 1950-51 में नहरों का सिंचित क्षेत्र 83 लाख हेक्टेयर था जो अब 1.7 करोड़ हेक्टेयर हो चुका है। इसके बावजूद कुल सिंचित क्षेत्र में नहरों का हिस्सा 1951 में 40 प्रतिशत से घटकर 2010-11 में 26 प्रतिशत रह गया है। दूसरी ओर कुल सिंचित क्षेत्र में कुओं और ट्यूबवेल का हिस्सा 29 प्रतिशत से बढ़कर 64 प्रतिशत तक पहुँच चुका है।

सिंचाई प्रणाली के प्रकार

धरातल या भूमिगत जल की उपलब्धता, भौगोलिक स्थिति, मिट्टी की प्रकृति और नदियों को ध्यान में रखते हुए देश में निम्नलिखित सिंचाई प्रणालियाँ इस्तेमाल की जा रही हैं:

1. जलाशय जल सिंचाई प्रणाली : प्रायद्वीपीय भारत के असमतल और पथरीले पठार में यह प्रणाली लोकप्रिय है। दक्कन के पठार, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश के पूर्वी हिस्से, छत्तीसगढ़, ओडिशा और महाराष्ट्र में आमतौर पर जलाशयों का इस्तेमाल किया जाता है। कुल सिंचित क्षेत्र के लगभग 8 प्रतिशत हिस्से में जलाशयों से सिंचाई होती है। देश में लगभग 5 लाख बड़े और 50 लाख छोटे जलाशय हैं जिनसे 25.24 लाख हेक्टेयर से ज्यादा कृषि भूमि पर सिंचाई की जाती है। ज्यादातर जलाशय छोटे हैं जिन्हें व्यक्तियों या किसानों के समूहों ने मौसमी झरनों पर बाँध बनाकर निर्मित किया है।1. अधिकतर जलाशय प्राकृतिक हैं जिनके निर्माण पर ज्यादा खर्च नहीं आता। यहाँ तक कि कोई किसान खुद का जलाशय भी बना सकता है।

2. सामान्यतः जलाशय पथरीली सतह पर बनाए जाते हैं और उनका लम्बे समय तक इस्तेमाल किया जा सकता है।

3. कई जलाशयों में मत्स्य पालन भी किया जाता है। इससे किसानों के खाद्य संसाधनों और आमदनी में भी इजाफा होता है।

लेकिन जलाशय के जरिए सिंचाई की कुछ सीमाएँ भी हैं। कृषि की जमीन का एक बड़ा हिस्सा जलाशय में चला जाता है। जलाशय उथले और बड़े क्षेत्र में फैले होने के कारण इनमें पानी के वाष्पीकरण की प्रक्रिया तेज होती है। इनसे बारहों महीने पानी की आपूर्ति सुनिश्चित नहीं की जा सकती। जलाशय से पानी निकालना और उसे खेत तक पहुँचाना भी मेहनत का और खर्चीला काम है। इस वजह से किसान जलाशय को सिंचाई के साधन के तौर पर अपनाने से कतराते हैं।

कुआँ जल सिंचाई प्रणाली : मैदानी, तटीय और प्रायद्वीपीय भारत के कुछ क्षेत्रों में यह प्रणाली ज्यादा अपनाई गई है। यह कम खर्चीली प्रणाली है। कुएँ से पानी जब भी जरूरत पड़े, निकाला जा सकता है। इसमें वाष्पीकरण कम होता है और जरूरत से ज्यादा सिंचाई का भय भी नहीं रहता।

1. 1950-51 में देश में लगभग 50 लाख कुएँ थे जिनकी संख्या अब 1.2 करोड़ तक पहुँच गई है। देश के कुल सिंचित क्षेत्र में से 60 प्रतिशत से ज्यादा में सिंचाई कुओं से ही होती है। नहरों से 29.2 प्रतिशत और जलाशयों से सिर्फ 4.6 प्रतिशत सिंचित क्षेत्र में सिंचाई होती है। वर्ष 1950-51 और 2000-01 के बीच कुओं से सिंचित क्षेत्र में पाँच गुना से ज्यादा की वृद्धि हुई है। 1950-51 में कुओं से 59.78 लाख हेक्टेयर जमीन पर सिंचाई होती थी जो 2000-01 में बढ़कर 332.77 लाख हेक्टेयर हो गई।

2. भारत में कुओं से सिंचित क्षेत्र का सबसे बड़ा यानी 28 प्रतिशत हिस्सा उत्तर प्रदेश में है। उसके बाद राजस्थान (10 प्रतिशत), पंजाब (8.65 प्रतिशत), मध्य प्रदेश (8 प्रतिशत), गुजरात (7.3 प्रतिशत), बिहार, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु का स्थान है।

3. गुजरात में कुल सिंचित क्षेत्र के 82 प्रतिशत हिस्से में कुएँ से सिंचाई होती है। पंजाब (80 प्रतिशत), उत्तर प्रदेश (74 प्रतिशत), राजस्थान (71 प्रतिशत), महाराष्ट्र (65 प्रतिशत), मध्य प्रदेश (64 प्रतिशत) और पश्चिम बंगाल (60 प्रतिशत) में भी कुआँ प्रणाली सिंचाई में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

4. भारत में कुएँ से सिंचित क्षेत्र का तीन चौथाई हिस्सा उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, मध्य प्रदेश, गुजरात, बिहार और आंध्र प्रदेश में है।

कुएँ दो प्रकार के होते हैं:

क. खुले कुएँ : खुले कुएँ कम गहरे होते हैं। पानी की उपलब्धता सीमित होने के कारण इनसे छोटे क्षेत्र में ही सिंचाई हो सकती है। खुष्क मौसम में इनमें पानी का स्तर नीचे चला जाता है।

ख. ट्यूबवेल : ट्यूबवेल गहरे और खेती के ज्यादा अनुकूल होते हैं जिनसे अधिक पानी निकाला जा सकता है। इनमें बारहों महीने पानी रहता है। किसी खुले कुएँ से आधा हेक्टेयर जमीन ही सिंचित हो सकती है जबकि बिजली से चलने वाला एक गहरा ट्यूबवेल लगभग 400 हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई कर सकता है। हाल के बरसों में ट्यूबवेल की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है। ट्यूबवेल को खेत के नजदीक वैसी जगह लगाया और इस्तेमाल किया जा सकता है जहाँ भूमिगत जल आसानी से उपलब्ध हो।

ट्यूबवेल का इस्तेमाल मुख्यतौर पर उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, बिहार और गुजरात में किया जाता है। राजस्थान और महाराष्ट्र में खेतों को अब उत्स्रुत कूपों से भी पानी दिया जा रहा है। इन कूपों में उच्च दबाव के कारण पानी के नैसर्गिक प्रवाह की वजह से जलस्तर

Answered by Hitlerdidi
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Answer:

An ecosystem is a geographic area where plants, animals, and other organisms, as well as weather and landscape, work together to form a bubble of life. Ecosystems contain biotic or living, parts, as well as abiotic factors, or nonliving parts. ... Ecosystems can be very large or very small.

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