Art, asked by arshisheikh8888, 4 months ago

साची के स्तुप प्रख्या 1 सी सौतिक एंव सौदर्भ विशिष्टताओं
का वर्णन करें।​

Answers

Answered by shubham34kumar
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Answer:

sorry this video is not a problem with the c form of

Answered by babligautam229
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Explanation:

सांची में बौद्ध स्‍तूप

सांची, जिसे काकानाया, काकानावा, काकानाडाबोटा तथा बोटा श्री पर्वत के नाम से प्राचीन समय में जाना जाता था और अब यह मध्‍य प्रदेश राज्‍य में स्थित है। यह ऐतिहासिक तथा पुरातात्विक महत्‍व वाला एक धार्मिक स्‍थान है। सांची अपने स्‍तूपों, एक चट्टान से बने अशोक स्‍तंभ, मंदिरों, मठों तथा तीसरी शताब्‍दी बी. सी. से 12वीं शताब्‍दी ए. बी. के बीच लिखे गए शिला लेखों की संपदा के लिए विश्‍व भर में प्रसिद्ध है।

सांची के स्‍तूप अपने प्रवेश द्वारा के लिए उल्‍लेखनीय है, इनमें बुद्ध के जीवन से ली गई घटनाओं और उनके पिछले जन्‍म की बातों का सजावटी चित्रण है। जातक कथाओं में इन्‍हें बोधि सत्‍व के नाम से वर्णित किया गया है। यहां गौतम बुद्ध को संकेतों द्वारा निरुपित किया गया है जैसे कि पहिया, जो उनकी शिक्षाओं को दर्शाता है।

सांची को 13वीं शताब्‍दी के बाद 1818 तक लगभग भुला ही दिया गया था, जब जनरल टेलर, एक ब्रिटिश अधिकारी ने इन्‍हें दोबारा खोजा, जो आधी दबी हुई और अच्‍छी तरह संरक्षित अवस्‍था में था। बाद में 1912 में सर जॉन मार्शल, पुरातत्‍व विभाग के महानिदेशक में इस स्‍थल पर खुदाई के कार्य का आदेश दिया।

शूंग के समय में सांची में और इसकी पहाडियों के आस पास अनेक मुख द्वार तैयार किए गए थे। यहां अशोक स्‍तूप पत्‍थरों से बड़ा बनाया गया और इसे बालू स्‍ट्रेड, सीढियों और ऊपर हर्मिका से सजाया गया। चालीस मंदिरों का पुन: निर्माण और दो स्‍तूपों को खड़ा करने का कार्य भी इसी अवधि में किया गया। पहली शताब्‍दी बी. सी. में आंध्र - 7 वाहन, जिसने पूर्वी मालवा तक अपना राज्‍य विस्‍तारित किया था, ने स्‍तूप 1 के नक्‍काशी दार मार्ग को नुकसान पहुंचाया। दूसरी से चौथी शताब्‍दी ए डी तक सांची तथा विदिशा कुषाणु और क्षत्रपों का राज्‍य था और इसके बाद यह गुप्‍त राजवंश के पास चला गया। गुप्त काल के दौरान कुछ मंदिर निर्मित किए गए और इसमें कुछ शिल्‍पकारी जोडी गई।

सबसे बड़ा स्‍तूप, जिसे महान स्‍तूप कहते हैं, चार नक्‍काशीदार प्रवेश द्वारों से घिरा हुआ है जिसकी चारों दिशाएं कुतुबनुमे की दिशाओं में हैं। इसके प्रवेश द्वार संभवतया 1000 एडी के आस पास बनाए गए। ये स्‍तूप विशाल अर्ध गोलाकार गुम्‍बद हैं जिनमें एक केन्‍द्रीय कक्ष है और इस कक्ष में महात्‍मा बुद्ध के अवशेष रखे गए थे। सांची के स्‍तूप के अवशेष बौद्ध वास्‍तुकला के विकास और तीसरी शताब्‍दी बी सी 12वीं शताब्‍दी ए डी के बीच उसी स्‍थान की शिल्‍पकला का दर्शाते हैं। इन सभी शिल्‍पकलाओं की एक सबसे अधिक रोचक विशेषता यह है कि यहां बुद्ध की छवि मानव रूप में क‍हीं नहीं है। इन शिल्‍पकारियों में आश्‍चर्यजनक जीवंतता है और ये एक ऐसी दुनिया दिखाती हैं जहां मानव और जंतु एक साथ मिलकर प्रसन्‍नता, सौहार्द और बहुलता के साथ रहते हैं। प्रकृति का सुंदर चित्रण अद्भुत है। महात्‍मा बुद्ध को यहां मानव से परे आकृतियों में सांकेतिक रूप से दर्शाया गया है। वर्तमान में यूनेस्‍को की एक परियोजना के तहत सांची तथा एक अन्‍य बौद्ध स्‍थल सतधारा की आगे खुदाई, संरक्षण तथा पर्यावरण का विकास किया जा रहा है।

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