Hindi, asked by Nanditasahoo2008, 1 month ago

संछेप में इस कविता का भावार्थ लिखिए​


ऊपर से आज़ाद भले हम-
भीतर से आज़ाद बनो,
आपस के झगड़ों को छोड़ो-
कर्मवीर जाँबाज बनो
नानक और शिवा का भारत-
/गाँधी और सुभाष बनो,
मीरा, पुतली, लक्ष्मीबाई-
पृथ्वी और प्रताप) बनो।
नहीं धर्म और जाति भेद हो-
नहीं भाषा व रंग भेद,
रह्ये सदा तुम सबके मन में-
नेक बनो इंसान बनो।
बीते कल की याद नहीं तुम-
भावी कल की आज बनो,
दिव्य रोश्नी दो जग को तुम-
दुनिया का सरताज बनो।।​

Answers

Answered by manaspandey09
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Answer:

इस कविता मे कवी कहना चाहते है की,हम भले ही उपर से कितने भी आजाद हों लेकिन हमे अन्दर से आजाद बन्ना चाहिये।

हमे कर्मवीर बनना है गुरु नानक शिवजी की तरह , मीर बाई जैसे भगवन श्री कृष्णा के भक़्त बनने चाहिये।

कभी भी ना ही रन्ग या जाती का भेद हो

ना ही कभी भासा या कला या गोर होने का भेद हो।

सदा सबके मन मे रहो और नेक इन्सान बनो।

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