सूफी धर्म के अचार और विचार का वर्णन कीजिए
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सूफी दर्शन केवल एक ईश्वर में विश्वास ( एकेश्वरवादी ) करता था। उनके अनुसार ईश्वर एक है और सभी कुछ ईश्वर में है। सूफियों का जीवन सादा होता था। वे मूर्तिपूजा में विश्वास नहीं करते थे।
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सूफीवाद इस्लाम के भीतर ही एक रहस्यवादी आंदोलन के रूप में ईरान से शुरू हुआ था, जिसमें शिया और सुन्नी सम्प्रदायों के मतभेदों को दूर करने का प्रयास किया गया। सूफी शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के सफा शब्द से हुई है – जिसका अर्थ है पवित्रता अर्थात् जो लोग आध्यात्मिक रूप से और आचार-विचार से पवित्र थे, वे सूफी कहलाए। 10 वी. शता. में मुताजिल अथवा तुर्क बुद्धवादी दर्शन का आधिपत्य समाप्त हुआ और पुरातनपंथी विचारधारा का जन्म हुआ जो कुरान और हदीस पर आधारित थी। इसी समय सूफी रहस्यवाद का जन्म हुआ। परंपरावादियों की रचना इस्लामी कानून की चार विचारधाराओं में बँट गई। इसमें से हनफी विचाधारा सबसे अधिक उदारवादी थी। इसे ही पूर्वी तुर्कों ने अपनाया और ये पूर्वी तुर्क ही कालांतर में भारत आये।
रहस्यवादियों का जन्म इस्लाम के अंतर्गत बहुत पहले हो गया था। यही बाद में सूफी कहलाए। महिला रहस्यवादी रबिया और मंसूर-बिन-हल्लाज जैसे प्रारंभिक सूचियों ने ईश्वर और व्यक्ति के बीच प्रेम संबंध पर बहुत अधिक बल दिया। किन्तु उनकी सर्वेश्वरवादी दृष्टि के कारण उनमें और परंपरावादी तत्वों के बीच संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गई। इन परंपरावादियों ने अफवाहों के बल पर मंसूर को फांसी पर लटकवा दिया।
अल-गज्जाली ने रहस्यवाद और इस्लामी परंपरावाद के बीच मेल कराने का प्रयत्न किया। भारत में दिल्ली सल्तनत की स्थापना के पूर्व सूफी सिलसिले का आगमन हो चुका था। इस समय ( 12 वी. शता.) तक सूफी सम्प्रदाय बारह सिलसिले में विभाजित हो गया था।
सूफी विचारधारा में गुरू ( पीर ) और शिष्य ( मुराद ) के बीच संबंध का महत्त्व बहुत अधिक है। प्रत्येक पीर अपना उत्तराधिकारी ( वलि ) नियुक्त करता था। सूफी दर्शन केवल एक ईश्वर में विश्वास ( एकेश्वरवादी ) करता था। उनके अनुसार ईश्वर एक है और सभी कुछ ईश्वर में है। सूफियों का जीवन सादा होता था। वे मूर्तिपूजा में विश्वास नहीं करते थे। संगीत और गायन को ईश्वर का नाम लेने में सहायक मानते थे और भाव विभोर होकर नाचते गाते थे।