Hindi, asked by Naresh5343, 2 months ago

साहित्य में तर्क और प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती। उससे जिस
आनन्द की सृष्टि होती है उससे दो व्यक्तियों के बीच का, दो देशों के बीच
का पार्थक्य नष्ट हो जाता है। ऐक्य की अनुभूति वैसे भी सुखकर होती है।
साहित्यकार जब सबमें अपने को देखता है तो वह अपने जीवन में पूर्णत्व का,
संतुलन का अनुभव करता है। संसार में जहां यह पूर्णत्व है, संतुलन है, वहीं
सौंदर्य है।

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Answered by pkfcdbgp
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Answer:

अध्यात्म के द्वार पे खड़ा साहित्यकार ही पूर्णतया समभाव के स्वाद को चख पाता है

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