Hindi, asked by rafiloyola7147, 11 months ago

साहित्य समाज का दर्पण है पर निबंध। Sahitya Samaj ka Darpan hai Nibandh

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Answered by Stylishhh
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संस्‍कृति और सभ्‍यता दो पृथक व्‍यवस्‍थाएं तथा विचार तत्‍व हैं किन्‍तु दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं । इनकी सम्‍पूर्णता विश्‍वव्‍यापी व सर्वकालीन तब संभव बन जाती है जब इसका अभिव्‍यक्‍ति संकलित हो जाए व संस्‍कार रूप में आने वाली पीढि़यों के लिए अध्‍ययन का आधार व ज्ञान का प्रतीक बन जाए तभी एक विशिष्‍ट समाज का चरणेबद्ध विकास देखा व समझाया जा सकता है। अत: यदि कहें कि सभ्‍यता और संस्‍क्रृति तभी युग विशेष की सामाजिक व्‍यवस्‍था में परिवर्तित होती है जब उसका साहित्‍यिक विवेचन संभव हो अन्‍यथा मूक साक्ष्‍य सभ्‍यता का भौगोलिक वर्णन तो कर देते है किंतु समाज और संस्‍कृति की विशिष्‍ट पहचान साहित्‍य के माध्‍यम से ही संभव है । साहित्‍य के अभाव में इसे अंधकार युग की संस्‍कृति कहना पाठक के लिए एक असांमजस्‍य स्थिति का प्रतीक होता है। अत: साहित्‍य लेखन भाषा और लिपि का जन्‍म स्‍वतंत्र अभिव्‍यक्‍ति संकलन का परिपाठी तथा संकलित सामग्री का रखरखाव ऐसी मानवीय प्रवृत्ति है जिसके द्वारा युवा विशेष के समाज और उसकी विशिष्‍ट संस्‍कृति को संजोया जा सकता है।

संस्‍कृत का निर्माण वस्‍तुत: समुदाय और समाज का परिपक्‍व रूप है। ज्ञातव्‍य है कि भौगोलिक विस्‍तारण युग-विशेष की सभ्‍यता का सूचक हो सकता है जिसके भातर क्षेत्रीय गुट को समुदाय कहा जाता है और इन समुदायों के संयोजन से समाज का निर्माण होता है जो मुख्‍यत: भौगोलिक और आर्थिक व्‍यवस्‍था पर केन्द्रित होता है। इसी कारण प्रारंभिक सभ्‍यताओं के विषय में सदैव आर्थिक जीवन लिखा जाता है अथवा सम्‍बोधित किया जाता है। वस्‍तुत: जब उस समाज विशेष की सामाजिक, राजनैतिक, प्रशासनिक, राजनैतिक, धार्मिक, न्‍यायिक व्‍यवस्‍थाएं स्‍थापित हो जाती हैं तब स्‍वत: ही पृथक-पृथक क्षेत्रों में संस्‍कारों का निर्माण होता है। यही संस्‍कार सृजित होकर संसकृति का निर्माण करत हैं जो आधरभूत रूप से दो प्रकार के होते है। औपचारिक संस्‍कार और अनौपचारिक संस्‍कार। व्‍यक्‍तिगत रूप से समाज की इकाई अथवा परिवार में दिये जाने वाले संस्‍कार अनौपचारिक होते हैं जबकि व्‍यवस्‍था संबंघी संस्‍कार अनौपचारिक होते हैं। इन्‍हीं का संकलन परम्‍परागत रूप से मौखिक तथा लिखित साहित्‍य का कारण है। अत: संस्‍कृति निर्माण के उपरांत ही साहित्‍य संकलन संभव हो जो भाषायी आधार पर मौखिक होता है जब‍कि लिनिबद्ध होने पर लिखित साहित्‍य का सृजन होता है।

साहित्‍य वस्‍तुत: क्षेत्र विशेष की भौगोलिक स्थिति संस्‍था, जलवायु, विचारधारा, राजनैतिक एवं धामिंक प्रभाव, संस्‍कारों, विश्‍वासों एवं मूल्‍यों एवं व्‍यवस्‍थाओं से संबंधित होता है। तकनीकी उत्‍थान प्रसार, प्रभाव और पराभाव की व्‍याख्‍या से सामंजस्‍य रखता है। सुदृढ़ अर्थव्‍यवस्‍था सुशिक्षित समाज तथा उदारवादी युग में इसका विकसित होना एक स्‍वाभाविक प्रक्रिया है जबकि इसके विपरीत अराजकता, रुग्‍ण अर्थव्‍यवस्‍था और असुरक्षा के काल-विशेष में साहित्‍य का संकीर्ण हो जाना अत: उसका विषयवस्‍तु नकारात्‍मक से प्रेरित होना एक विशिष्‍ट मनोवैज्ञज्ञनिक कारण होता है। ऐसे में तत्‍कालिक व पूर्वकालिक साहित्‍य का बहुमुखी अध्‍ययन कार्य विशेष की संस्‍क्रृति को पाठक के समक्ष उजागर कर देता है। मोटे तौर पर विश्‍वव्‍यापी विश्‍व के विकास का सम्‍पादन करता है अत: सभ्‍यताओं का युग विशेष व मनवन्‍तर के काल में हुए विकास को अथवा पतन को एकमात्र साहित्‍य के द्वारा ही जाना व समझा जा सकता है। साहित्‍य, सभ्‍यता, संस्‍कृति और समाज व उसकी परम्‍पराओं का विभाजन करता है और स्‍पष्‍ट कर देता है कि किस भौगोलिक और संस्‍कुतिक क्षेत्र में कौन-से वह आर्थिक, राजनैतिक व सांस्‍कृतिक कारण थे जिस कारण विशिष्‍ट समाज का प्रादुर्भाव हुआ अथवा वह कौन-सी गतिविधियां र्थी जिनसे अमुक व्‍यवस्‍था ने जन्‍म लिया। साहित्‍य लेखन की विभिन्‍न विधाएं जैसे धार्मिक साहित्‍य, धर्मेत्‍तर साहित्‍य, राजकीय साहित्‍य, असंप्रदायिक साहित्‍य, स्‍वछन्‍द साहित्‍य, संस्‍मरण साहित्‍य, यात्रावृतान्‍त साहित्‍य व्‍यावसायिक, जीवन वृतांत साहित्‍य, टीका-टिप्‍पणी इत्‍यादि वस्‍तुत: ऐसे माध्‍यम हैं जिनके द्वारा पृथक-पृथक विधाओं और शैलियों के माध्‍यम से तत्‍कालिक लेखक के मनोभाव व उसको समाज की स्‍वीकृति तथा उसके द्वारा समाज का विश्‍लेषण ज्ञात होता है। ऐसे साहित्‍य विशेष का तुलनात्‍मक अध्‍ययन अवश्‍यम्‍भावी हो जाता है। तत्‍कालिक, पूर्वकालिक, उत्‍तोत्‍तरकालिक साहित्‍य के साथ आश्‍यानात्मक वर्णन पाठक को एक निष्‍कष पर पहुंचा देता है जिके माध्‍यम से एक युग विशेष की सामाजिक व्‍यवस्‍था और सांस्‍कृतिक मान्‍यता स्‍पष्‍ट हो जाती है। अतएव, साहित्‍यकार और समाजशास्‍त्री यह मानते हैं कि साहित्‍य को किसी भी क्षेत्र विशेष के तत्‍कालिक व ऐतिहासिक अध्‍ययन चक्षु कहना चाहिए।

Hope it Helps !!!

Answered by Anonymous
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“साहित्य समाज का दर्पण है” वो कैसे ?जिस तरह से आप दर्पण या शीशे (Miror) में अपने आप को देखते हो या निहारते हो तो आप उसी तरह से दिखाई देते हो जैसे आप हो| ठीक उसी तरह से साहित्य भी ऐसे देखने को मिलेगा जैसा समाज है क्योकि कोई लेखक या कवि वही लेख या कविता लिखता है जो वह समाज में देखता है या सुनता है |समाज की क्रियाकलाप ही उसको लिखने के लिए प्रोत्साहित करते है, उदाहरणार्थ मुंशी प्रेम चन्दजी ने अपनी कहानियों या उपन्यासो में वही लिखा जो उस समय मुंशी प्रेम चन्द जी ने देखा | उस समय समाज में कितनी गरीबी थी कितनी बेरोजगारी थी या कितनी परेशानिया थी यह सब कुछ वर्णन उनकी कहानियों या उपन्यासों में देखने को मिल जायेगा| दो बैलो की जोड़ी की कहानी “हीरा मोती”,”कफ़न”,”निर्मला”,”मंगल सूत्र”,”गोदान” इसके जव्लन्त उदाहरण है| उस समय धनाढय लोग या महाजन या बनिए लोग किस तरह से अपने बही खातो में या कोरे कागजो पर गरीब किसान व मजदूरों से उनके दस्तखत या हस्ताक्षर (Signature) करा लेते थे ओर उन्हें कर्ज देते थे ओर किस प्रकार उनका पूरी उमर उनका खून चूसते थे| बेचारे गरीब किसान एक बार कर्ज लेकर सारी उमर कर्ज में डूबे रहते थे| यह सब कुछ समाज ओर किसानो की दुर्दशा उनके हीरा मोती ,गोदान उपन्यास में देखने को मिल जायेगा|मुंशी प्रेम चन्द जी की कहानियों व उपन्यासों के आधार पर कुछ फिल्मे भी बन चुकी है जैसे “गोदान”| कुछ कहानियी के आधार पर कुछ सीरयल भी बन चुके है |

Answered by Anonymous
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“साहित्य समाज का दर्पण है” वो कैसे ?जिस तरह से आप दर्पण या शीशे (Miror) में अपने आप को देखते हो या निहारते हो तो आप उसी तरह से दिखाई देते हो जैसे आप हो| ठीक उसी तरह से साहित्य भी ऐसे देखने को मिलेगा जैसा समाज है क्योकि कोई लेखक या कवि वही लेख या कविता लिखता है जो वह समाज में देखता है या सुनता है |समाज की क्रियाकलाप ही उसको लिखने के लिए प्रोत्साहित करते है, उदाहरणार्थ मुंशी प्रेम चन्दजी ने अपनी कहानियों या उपन्यासो में वही लिखा जो उस समय मुंशी प्रेम चन्द जी ने देखा | उस समय समाज में कितनी गरीबी थी कितनी बेरोजगारी थी या कितनी परेशानिया थी यह सब कुछ वर्णन उनकी कहानियों या उपन्यासों में देखने को मिल जायेगा| दो बैलो की जोड़ी की कहानी “हीरा मोती”,”कफ़न”,”निर्मला”,”मंगल सूत्र”,”गोदान” इसके जव्लन्त उदाहरण है| उस समय धनाढय लोग या महाजन या बनिए लोग किस तरह से अपने बही खातो में या कोरे कागजो पर गरीब किसान व मजदूरों से उनके दस्तखत या हस्ताक्षर (Signature) करा लेते थे ओर उन्हें कर्ज देते थे ओर किस प्रकार उनका पूरी उमर उनका खून चूसते थे| बेचारे गरीब किसान एक बार कर्ज लेकर सारी उमर कर्ज में डूबे रहते थे| यह सब कुछ समाज ओर किसानो की दुर्दशा उनके हीरा मोती ,गोदान उपन्यास में देखने को मिल जायेगा|मुंशी प्रेम चन्द जी की कहानियों व उपन्यासों के आधार पर कुछ फिल्मे भी बन चुकी है जैसे “गोदान”| कुछ कहानियी के आधार पर कुछ सीरयल भी बन चुके है |

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