२. सोहत ओढ़े पीत पट, स्याम सलोने गात| मनहुं नीलमनि सैल पर, आतप परयौ प्रभात|| spastikarad
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Kavi ji khte hai ki Krishna jipeele vastra dharan krte hai, jisse veh sundar dikhte hai. Unka shareer neela hai, jo nilmani parvat ki tarah dikhta hai. Unpar jab surya ki peeli roshni padti hai, tab veh atyadikh manmohak prateet hote hai.
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सोहत ओढ़े पीत पट स्याम सलोने गात। मनहुं नीलमनि सैल पर, आपत परयौ प्रभात। पंक्ति में उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। उपर्युक्त काव्य-पंक्तियों में श्रीकृष्ण के सुन्दर श्याम शरीर में नीलमणि पर्वत की ओर उनके शरीर पर शोभायमान पीताम्बर में प्रभत की धूप की मनोरम सम्भावना अथवा कल्पना की गई है।
उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा – जहां उपमेय में उपमान की संभावना अथवा कल्पना कर ली गई हो, वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। इसके बोधक शब्द हैं– मनो, मानो, मनु, मनहु, जानो, जनु, जनहु, ज्यों आदि।
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