Hindi, asked by Anonymous, 11 months ago

सोहत ओढ़ें पीतु पटु स्याम, सलौनें गात।
मनौ नीलमनि-सैल पर आतपु पर्यो प्रभात।।
कहलाने एकत बसत अहि मयूर, मृग बाघ।
जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ-दाघ निदाघ।।
बतरस-लालच लाल की मुरली धरी लुकाइ।
- सौंह करें भौंहनु हँसै, दैन कहैं नटि जाइ।।

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Class 10 हिन्दी CBSE​

Answers

Answered by Pallakavya
11

Explanation:

बिहारी

दोहे

सोहत ओढ़ैं पीतु पटु स्याम, सलौनैं गात।

मनौ नीलमनि सैल पर आतपु परयौ प्रभात॥

इस दोहे में कवि ने कृष्ण के साँवले शरीर की सुंदरता का बखान किया है। कवि का कहना है कि कृष्ण के साँवले शरीर पर पीला वस्त्र ऐसी शोभा दे रहा है, जैसे नीलमणि पहाड़ पर सुबह की सूरज की किरणें पड़ रही हैं।

कहलाने एकत बसत अहि मयूर, मृग बाघ।

जगतु तपोवन सौ कियौ दीरघ दाघ निदाघ।।

इस दोहे में कवि ने भरी दोपहरी से बेहाल जंगली जानवरों की हालत का चित्रण किया है। भीषण गर्मी से बेहाल जानवर एक ही स्थान पर बैठे हैं। मोर और सांप एक साथ बैठे हैं। हिरण और बाघ एक साथ बैठे हैं। कवि को लगता है कि गर्मी के कारण जंगल किसी तपोवन की तरह हो गया है। जैसे तपोवन में विभिन्न इंसान आपसी द्वेषों को भुलाकर एक साथ बैठते हैं, उसी तरह गर्मी से बेहाल ये पशु भी आपसी द्वेषों को भुलाकर एक साथ बैठे हैं।

Answered by bhatiamona
0

सोहत ओढ़ें पीतु पटु स्याम, सलौनें गात।

मनौ नीलमनि-सैल पर आतपु पर्यो प्रभात।।

कहलाने एकत बसत अहि मयूर, मृग बाघ।

जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ-दाघ निदाघ।।

बतरस-लालच लाल की मुरली धरी लुकाइ।

सौंह करें भौंहनु हँसै, दैन कहैं नटि जाइ।।

यह दोहे कभी बिहारी द्वारा रचित दोहे है। इन दोहों की व्याख्या इस प्रकार है।

व्याख्या :

पहले दोहे में कवि बिहारी ने श्री कृष्ण के साँवले शरीर की सुंदरता का गुणगान किया है। कवि कहते हैं कि कृष्ण के साँवले शरीर पर पीले वस्त्र इस प्रकार शोभायमान हो रहे हैं, जैसे नीलमणि के किसी पहाड़ पर सुबह-सुबह सूरज की किरणें पड़ रही हों।

दूसरे दोहे में कवि बिहारी कहते हैं इस भरी दुपहरी में गर्मी ने जानवरों की हालत ऐसी कर दी है कि वह भीषण गर्मी के कारण एक ही स्थान पर बैठे हैं। मोर और सांप एक साथ बैठे हैं तो हिरन और बाघ एक साथ बैठे हैं। गर्मी के कारण यह जंगल किसी तपोवन की तरह हो गया है। तपोवन में अलग अलग स्वभाव और चरित्र के व्यक्ति आपसी बैरभाव  भुलाकर एक साथ रहते हैं, उसी प्रकार ये जंगल भी तपोवन जैसा हो गया है।

तीसरे दोहे में कवि बिहारी कहते हैं कि गोपियों ने कृष्ण की बांसुरी को इसलिए छुपा दिया है ताकि उन्हें कृष्ण से बात करने का मौका मिल सके। गोपियां कृष्ण के सामने नखरे तो दिखा रही हैं और अपनी भौंहे चलाकर कसमें भी खा रहे हैं, लेकिन उनके मुंह से ना नहीं निकल रहा है।

#SPJ3

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