साइकिल की सवारी का सारांश क्या है
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सुनो कहानी: पंडित सुदर्शन की " साइकिल की सवारी"
पंडित सुदर्शन इस कहानी में साइकिल को सीखने के बारे में बताता कैसे उसे अपने समय की याद आती है , कैसे कहते है साइकिल बचपन में सिख ली होती तो मुश्किल नहीं होती , और दस पैसे रोज पर छोटी साइकिल कराये पर लाने का मतलब जेब खर्च सीधा सीधा नुकसान था| दसवीं क्लास के बाद मैंने साइकिल जैसे तैसे सीख ली क्योंकि बारहवीं में हमारा सेंटर घर से चार किलोमीटर दूसरे कस्बे में था और माँ नहीं चाहतीं थी कि मैं पैदल जाऊं| तेज रफ़्तार साइकिल से एक सत्तर साला जवान मुझे पीछे छोड़ देते हैं| मैं इण्डिया गेट को चारों तरफ से देख रहा हूँ| शानदार नजारा है| तेज रफ्तार गाड़ियाँ मुझे रास्ता दे रहीं हैं| साइकिल में सफर करना और चलाना एक अलग मज़ा है|
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