साइमन मशीन पर टिप्पणी लिखे इन हिंदी
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1927 में वाइसराय लार्ड इरविन ने महात्मा गांधी को दिल्ली बुलाकर यह सूचना दी कि भारत में वैधानिक सुधार लाने के लिए एक रिपोर्ट तैयार की जा रही है जिसके लिए एक कमीशन बनाया गया है जिसके अध्यक्ष सर जॉन साइमन होंगे. साइमन कमीशन/Simon Commission की एक मुख्य विशेषता यह थी कि उसके सदस्यों में केवल अँगरेज़ ही अँगरेज़ थे.
गांधी जी ने इसे भारतीय नेताओं का अपमान माना. उनका यह अनुभव था कि इस तरह के कमीशन स्वतंत्रता की मांग को टालने के लिए बनाये जाते रहे हैं. सभी नेताओं का इस विषय में यह मत था कि साइमन कमीशन/Simon Commission आँखों में धूल झोकने का एक तरीका है और जले पर नमक छिड़कने का प्रयास है. चारों तरफ से साइमन कमीशन का विरोध होते देख कर भी सरकार अड़ी रही और 3 फरबरी 1928 को साइमन कमीशन/Simon Commission बम्बई के बंदरगाह पर उतर गया. उस दिन देश भर में हड़ताल मनाई गयी और साइमन गो बैक (Simon Go Back) के नारे हर जगह लगाये जाने लगे.
यह कमीशन जब लाहौर पहुंचा तो वहां की जनता ने लाला लाजपत राय के नेतृत्व में काले झंडे दिखाए और साइमन कमीशन वापस जाओ के नारों से आकाश गूंजा दिया. यह देखकर पुलिस आपे से बाहर हो गयी और लाठियाँ बरसाने लगीं. लाठियों का शिकार लाला लाजपत राय भी हुए और अंततः इसी से उनका देहांत हो गया. इसी तरह की घटनाएँ लखनऊ, पटना और अन्य स्थानों पर भी हुई.
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