साजि चतुरंग सैन, अंग में उमंग धरि I सरजा सिवाजी, जंग जीतन चलत है I भूषण भनत नाद,बिहद नगारन के नदी - नद मद, गैबरन के रलत है I इस पंक्ती में से इस रस की अभिव्यंजना होती है I * bhai bolo
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साजि चतुरंग सैन अंग में उमंग धरि
सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत है
भूषण भनत नाद बिहद नगारन के
नदी-नद मद गैबरन के रलत है
ऐल-फैल खैल-भैल खलक में गैल गैल
गजन की ठैल –पैल सैल उसलत है
तारा सो तरनि धूरि-धारा में लगत जिमि
थारा पर पारा पारावार यों हलत है
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