Psychology, asked by muthu7018, 9 months ago

संज्ञानात्मक अधिगम के विभिन्न रूपों की व्याख्या कीजिए।

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Answered by surajchaudhary16
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Answer:

संज्ञानात्मक विकास की अवस्थाएं

पियाजे के अनुसार विकास की अवस्थाएं क्रमिक होती हैं

संवेदी प्रेरक अवस्था – जन्म से 2 वर्ष तक यह अवस्था चलती है। इसमें बच्चे का शारीरिक विकास तेज़ी से होता है। उसके भीतर भावनाओं का विकास भी होता है।

पूर्व संक्रियात्मक अवस्था – जन्म से 7 वर्ष तक। इस अवस्था में बच्चा नई सूचनाओं व अनुभवों का संग्रह करता है। इसी अवस्था में बच्चे में आत्मकेंद्रित होने का भाव अभिव्यक्ति पाता है। पियाजे कहते हैं कि छह साल के कम उम्र के बच्चे में संज्ञानात्मक परिपक्वता का अभाव पाया जाता है।

मूर्त संक्रियात्मक अवस्था – यह सात से 11 वर्ष तक चलती है। इस उम्र में बच्चा विभिन्न मानसिक प्रतिभाओं का प्रदर्शन करता है। उदाहरण के दौर पर पहली कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे ने तोते से जुड़ी एक कविता सुनी जिसमें डॉक्टर तोते को सुई लगाता है और तोता बोलता है ऊईईई…। यह सुनकर पहली कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे ने कहा, “यह तो झूठ है। डॉक्टर तोते को सुई थोड़ी ही लगाते हैं।“ यहां एक छह-सात साल का बच्चा अपने अनुभवों के आईने में कविता में व्यक्त होने वाले विचार को बहुत ही यथार्थवादी ढंग से देखने की प्रतिभा का प्रदर्शन कर रहा है, जिसे ग़ौर से देखने-समझने की जरूरत है।

औपचारिक-संक्रियात्मक अवस्था – यह अवस्था 11 साल से शुरू होकर प्रौढ़ावस्था तक जारी रहती है। इस अवस्था में बालक परिकल्पनात्मक ढंग से समस्याओं के बारे में विचार कर पाता है। उदाहरण के तौर पर सातवीं कक्षा में पढ़ने वाली एक छात्रा कहती है कि सर ने हमें पढ़ाया कि गांधी के तीन बंदर थे। उनसे हमें सीख मिलती है कि हमें बुरा देखना, सुनना और कहना नहीं चाहिए। मैंने कहा बिल्कुल ठीक है। इस उम्र के बच्चे भी सुनी हुई बातों पर सहज यकीन कर लेते हैं। फिर बात हुई कि बग़ैर देखे हमें कैसे पता चलेगा कि सही और ग़लत क्या है, यही बात सुनने के संदर्भ में लागू होती है। बोलने के संदर्भ में हम एक चुनाव कर सकते हैं मगर वह पहले की दो चीज़ों के बाद ही आती है। यानि हमें अपने आसपास के परिवेश को समझने के लिए अपनी ज्ञानेंद्रियों का प्रयोग करना चाहिए ताकि हम समझ सकें कि वास्तव में क्या हो रहा है और सही व गलत का फैसला हम तभी कर सकते हैं।

Answered by bhatiamona
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संज्ञानात्मक अधिगम के विभिन्न रूपों की व्याख्या:

संज्ञानात्मक अधिगम ज्ञानेंद्रियो द्वारा चीजों को पहचानने समझने और ज्ञान प्राप्त करने मानसिक प्रक्रिया है|

संज्ञानात्मक अधिगम के रूप:

प्र्त्याक्ष्म्क अधिगम :यह चीजों को देखकर छुकर या फिर सुन कर सिखने से संबंधित है| इस में बच्चा उन पर चीजों के बारे में सीखता है , जो उसके सामने होती है|

जैसे हम उन्हें कोई खिलौना देते है वह उसे देखर बताता है क्या चीज़ है|

प्र्त्यात्म्क अधिगम: इस में बच्चा उन चीजों के बारे में चिंतन और कल्पना और तर्क विचार करके सीखता है , जो उस के सामने प्रयत्क्ष रूप से उसके सामने न हो|  

जैसे बच्चा किसी भी चीज़ के बारे में सोच कर बताता हा की उसे यह खिलौना चाहिए|

सह्चय्त्मिक अधिगम: इस में बच्चा पहले से सीखे हुए अनुभवों को जोड़कर नई चीज़ सीखता है|

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