चाक्षुष क्षेत्र के प्रत्यक्षण के संबंध में गेस्टाल्ट मनोवैज्ञानिकों की प्रमुख प्रतिज्ञप्ति क्या है?
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चाक्षुष क्षेत्र के प्रत्यक्षण के संबंध में गेस्टाल्ट मनोवैज्ञानिकों की प्रमुख प्रतिज्ञप्ति
ज्ञानेंद्रियों के उद्दीपन के कारण ही हम प्रकाश का अनुभव कर पाते हैं। ध्वनि को सुन पाते हैं। खुशबू को महसूस कर पाते हैं। इन अनुभवों को संवेदना कहा जाता है। ज्ञानेंद्रियों को उद्दीप्त करने वाले उद्दीपक से हमें संवेदना का अनुभव तो होता है परंतु हमें इन उद्दीपक की समझ नहीं प्राप्त हो पाती। हमें प्रकाश, ध्वनि या सुगंध के स्रोत के विषय में कोई जानकारी नहीं मिल पाती। जिस प्रक्रिया के द्वारा हम इन ज्ञानेंद्रियों को उद्दीपकों द्वारा प्राप्त सूचनाओं की पहचान करते हैं |वही चाक्षुस-प्रत्यक्षण कहलाता है।
उद्दीपक द्वारा घटनाओं का व्याख्यान करने में प्राणी अपने ढंग से उनका वर्णन करते हैं। प्रत्येक क्षण बाहरी अथवा आंतरिक जगत में आने वाली वस्तु अथवा घटना का व्याख्यान ही नहीं बल्कि अपनी समझ के अनुसार वस्तुओं या घटनाओं का विवेचन भी है।
प्राणी किसी वस्तु को कैसे पहचानते हैं? क्या व्यक्ति किसी जानवर की पहचान उसकी त्वचा, उसके पैरों, उसकी आँख, नाक आदि से करता है। वो उस जानवर की पहचान इसलिये करता है क्योंकि उसके मन में उस जानवर की छवि अंकित है।
विभिन्न अध्ययनों से यह निष्कर्ष निकला है कि प्रत्येक क्षण में अनेक प्रक्रियाएं प्रक्रिया करती हैं और हमें जगत की समझ प्रदान करती हैं।
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ज्ञानेंद्रियों की प्रकार्यात्मक सीमाओं की व्याख्या कीजिए।
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