"स्कुल हमारे लिए ऐसी जगह न थी जहाँ खुशी से भाग जाएँ" फिर भी लेखक और साथी स्कुल क्यों जाते थे? आज के स्कूलों के बारे में आपकी क्या राय है? क्यों? विस्तार से समझाइए I
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‘सपनों के से दिन’ पाठ के लेखक के अनुसार स्कूल जाना उन्हें बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था परंतु फिर भी वे और उनके साथी स्कूल जाया करते थे क्योंकि उन्हें स्काउट की परेड में भाग लेना बेहद पसंद था। जब वे लोग हाथ में रंग-बिरंगे झंडे लेकर और गले में स्कार्फ बाँधकर स्काउट के टीचर द्वारा लेफ्ट-राइट बोलने पर लेफ्ट-राइट करते तो लेखक और उनके साथियों को बड़ा मजा आता। इस कारण वे खुशी-खुशी स्कूल जाने के लिए तैयार रहते। वे पढ़ाई के कारण नहीं बल्कि खेलकूद की गतिविधियों के कारण स्कूल जाना पसंद करते थे।
आज के संदर्भ में स्कूलों की हालत देखी जाए तो पहले के स्कूलों के मुकाबले आज स्कूलों की स्थिति बिल्कुल भिन्न है। आजकल के स्कूलों में अनुशासन ज्यादा है, पढ़ाई का बोझ बहुत अधिक है। पहले स्कूल में अध्यापक छात्रों की पिटाई कर दिया करते थे, लेकिन आजकल के स्कूलों में छात्रों की पिटाई पर भी अंकुश लगा हुआ है। टीचर किसी छात्र को मार नही सिर्फ डांट सकते हैं। पहले स्कूलों में छात्र और अध्यापक के बीच में आत्मीयता भरा रिश्ता होता था, लेकिन आजकल के स्कूलों में छात्र और अध्यापक के बीच केवल औपचारिक संबंध रह गये हैं।
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