स्कूल किस प्रकार की स्थिति में अच्छा लगने लगता है। और क्यों ?
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यह प्रश्न ‘सपनों के दिन’ पाठ से संबंधित है। लेखक को यूं तो अपने बचपन में स्कूल जाना अच्छा नहीं लगता था।
लेखक के अनुसार उसे और उसके साथियों को कभी भी स्कूल ऐसी जगह नहीं लगी, जहां पर खुशी से जाए। चौथी कक्षा तक तो वह लोग ऐसे ही रोते चिल्लाते स्कूल जाया करते थे। लेकिन उसके बाद उन्हें स्कूल अच्छा तब लगने लगा जब स्काउटिंग का पीरियड होने लगा। जब उनके पीटी अध्यापक स्काउट के झंडों को ऊपर नीचे करवाते, स्काउट परेड करवाते तो उन्हें स्कूल जाना अच्छा लगता था।
स्काउट में उन्हें पढ़ाई नहीं करनी पड़ती थी और गले स्कार्फ और स्काउट ड्रेस पहनकर रंग-बिरंगे झंडे लेकर स्काउट परेड करनी पड़ती थी। सब बच्चे जब लेफ्ट-राइट करते हुए लाइक करते हुये चलते और मास्टरजी उन्हें शाबाशी देते तो लेखक और उसके दोस्तों को बहुत अच्छा लगता था। स्काउटिंग के दिनों में स्कूल उन्हें बेहद अच्छा लगने लगता था।
अतः स्कूल जाना उसी स्थिति में अच्छा लगता है, जब पढ़ाई न करनी पड़े और स्काउटिंग और पिकनिक जैसे कार्यक्रम हों।
लेखक के अनुसार उसे और उसके साथियों को कभी भी स्कूल ऐसी जगह नहीं लगी, जहां पर खुशी से जाए। चौथी कक्षा तक तो वह लोग ऐसे ही रोते चिल्लाते स्कूल जाया करते थे। लेकिन उसके बाद उन्हें स्कूल अच्छा तब लगने लगा जब स्काउटिंग का पीरियड होने लगा। जब उनके पीटी अध्यापक स्काउट के झंडों को ऊपर नीचे करवाते, स्काउट परेड करवाते तो उन्हें स्कूल जाना अच्छा लगता था।