संक्रमण तत्व किसे कहते इन के सामान्य गुण लिखिए
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ये सभी तत्त्व धातुएँ हैं, इसलिये इनको संक्रमण धातु भी कहते हैं। इनका यह नाम आवर्त सारणी में उनके स्थान के कारण पड़ा है क्योंकि प्रत्येक पिरियड में इन तत्त्वों के d ऑर्बिटल में इलेक्ट्रान भरते हैं और 'संक्रमण' होता है। आईयूपीएसी (IUPAC) ने इनकी परिभाषा यह दी है- वे तत्त्व जिनका d उपकक्षा अंशतः भरी हो।
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परमाणु संख्या २१ से ३०, ३९ से ४८, ५७ से ८० और ८९ से ११२ वाले रासायनिक तत्त्व संक्रमण तत्व (transition elements/ट्राँज़िशन एलिमेंट्स) कहलाते हैं। चूँकि ये सभी तत्त्व धातुएँ हैं, इसलिये इनको संक्रमण धातु भी कहते हैं।
विशेषताएँ– संक्रमण तत्त्वों की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
- इलेक्ट्रॉनिक विन्यास – संक्रमण तत्त्वों में बाह्यकोश से पिछले कोश के d ऑर्बिटलों में इलेक्ट्रॉन भरते हैं। इसके बाह्यतम दो कोशों का विन्यास इस प्रकार होता है – (n – 1)s2 (n – 1)p6 (n-1)d1 to 10 ns1 or 2 या ns0
- परिवर्ती ऑक्सीकरण अवस्थाएँ – d-ब्लॉक (संक्रमण) तत्त्वों में ns ऑर्बिटल और (n – 1)d ऑर्बिटल दोनों के इलेक्ट्रॉन रासायनिक बन्ध बनाने में भाग लेते हैं। इसलिए संक्रमण तत्त्व परिवर्ती ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करते हैं। संक्रमण तत्त्वों में (n – 1)d और ns ऊर्जा स्तरों की ऊर्जा में थोड़ा अन्तर होने के कारण ये इलेक्ट्रॉन रासायनिक बन्ध बनाने में भाग ले सकते हैं। इसलिए संक्रमण तत्त्व परिवर्ती ऑक्सीकरण संख्या प्रदर्शित करते हैं।
- उत्प्रेरक गुण – संक्रमण धातु और उनके यौगिकों में उत्प्रेरकीय गुण होते हैं। यह गुण उनकी परिवर्ती संयोजकता एवं उनके पृष्ठ पर उपस्थित मुक्त संयोजकताओं के कारण होता है।
- रंगीन आयन व रंगीन यौगिक बनाने की प्रवृत्ति – संक्रमण तत्त्वों में d ऑर्बिटल आंशिक रूप से भरे होने के कारण ये रंगीन आयन व रंगीन यौगिक बनाते हैं।
- आयनन विभव में परिवर्तन – संक्रमण धातुओं के प्रथम आयनन विभव दीर्घ आवर्गों में स्थित s-ब्लॉक और p ब्लॉक तत्त्वों के आयनन विभवों के बीच के हैं। प्रथम संक्रमण श्रेणी में तत्त्वों के प्रथम आयनन विभवों के मान 6 से 10 eV के मध्य है। किसी संक्रमण धातु परमाणु के उत्तरोत्तर (successive) आयनन विभव कम से बढ़ते हैं। संक्रमण धातु क्षार धातुओं (उपवर्ग IA) और क्षारीय मृदा-धातुओं (उपवर्ग IIA) से कम धन विद्युत होने के कारण आयनिक और सहसंयोजक दोनों प्रकार के यौगिक बनाते हैं।
- चुम्बकीय लक्षण – अनेक संक्रमण तत्त्व उनके यौगिक अनुचुम्बकीय हैं। इसका कारण उनमें (n – 1) d कक्षकों में अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति है। किसी संक्रमण श्रेणी में बायें से दायें जाने पर जैसे-जैसे अयुग्मि इलेक्ट्रॉनों की संख्या एक से पाँच तक बढ़ती है, संक्रमण धातु आयन में अनुचुम्बकीय लक्षण बढ़ता है। अधिकतम अनुचुम्बकीय लक्षण श्रेणी के बीच में पाया जाता है और आगे जाने पर अनुचुम्बकीय लक्षण अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या कम होने से घटता है। वे संक्रमण धातु अथवा आयन जिनमें इलेक्ट्रॉन युग्मित होते हैं, प्रतिचुम्बकीय होते हैं।
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