संकटों के बीच आनंद पूर्वक गाने और उत्साह पूर्ण मार गया कार्य पूरा करने वाले होते हैं
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- उत्साह में कष्ट या हानि सहने की दृढ़ता के साथ साथ कर्म में प्रवृत्त होने के आनंद का योग रहता पर केवल कष्ट या पीड़ा सहन करने के साहस में ही उत्साह का स्वरूप स्फुरित नहीं होता। जिन बातों से समाज के बीच उपहास, निंदा, अपमन इत्यादि का भय रहता है, उन्हें अच्छी और प्रचलित प्रथा के विरुद्धा पूर्ण तत्परता और प्रसन्नता के साथ कार्य करते जाते हैं
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