सुखिया सब संसार है, खावै अरु सोवै.. वैखया कीजिए
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लोग माया जनित अंधकार के वश में आकर खाना पीना और सोना को ही जीवन का उद्देश्य समझकर ग़लतफ़हमी में मस्त हैं। कबीर साहेब माया के बंधन को काट कर जाग गएँ हैं और गाफिल/बेफिक्र होकर सोये लोगों को देखकर उन्हें दुःख होता है (रोवे). जो अमूल्य जीवन मालिक के सुमिरन के लिए मिला था उसको बेहद सस्ते और हल्के में लेकर जीवन का अमूल्य वक़्त बर्बाद कर रहे हैं, इसे देखकर कबीर को मन ही मन दुःख होता है क्योंकि वे जाग चुके हैं।
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