सुलतान को देखकर खड्गसिह ने बाबा भारती से कया कहा
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खड़गसिंह उस इलाके का प्रसिद्ध डाकू था। लोग उसका नाम सुनकर कांपते थे। होते-होते सुल्तान की कीर्ति उसके कानों तक भी पहुंची। उसका हृदय उसे देखने के लिए अधीर हो उठा। वह एक दिन दोपहर के समय बाबा भारती के पास पहुंचा और नमस्कार करके बैठ गया। बाबा भारती ने पूछा,
“खडगसिंह, क्या हाल है?”
खडगसिंह ने सिर झुकाकर उत्तर दिया,
“आपकी दया है।”
“कहो, इधर कैसे आ गए?”
“सुलतान की चाह खींच लाई।”
“विचित्र जानवर है। देखोगे तो प्रसन्न हो जाओगे।”
“मैंने भी बड़ी प्रशंसा सुनी है।”
“उसकी चाल तुम्हारा मन मोह लेगी!”
“कहते हैं देखने में भी बहुत सुंदर है।”
“क्या कहना! जो उसे एक बार देख लेता है, उसके हृदय पर उसकी छवि अंकित हो जाती है।”
“बहुत दिनों से अभिलाषा थी, आज उपस्थित हो सका हूं।”
बाबा भारती और खड़गसिंह अस्तबल में पहुंचे। बाबा ने घोड़ा दिखाया घमंड से, खड़गसिंह ने देखा आश्चर्य से। उसने सैंकड़ो घोड़े देखे थे, परन्तु ऐसा बांका घोड़ा उसकी आंखों से कभी न गुजरा था। सोचने लगा, भाग्य की बात है। ऐसा घोड़ा खड़गसिंह के पास होना चाहिए था। इस साधु को ऐसी चीज़ों से क्या लाभ?
कुछ देर तक आश्चर्य से चुपचाप खड़ा रहा। इसके पश्चात् उसके हृदय में हलचल होने लगी। बालकों की-सी अधीरता से बोला,