सामाजिक असमानता का क्या कारण हो सकता है
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सामाजिक असमानता के कारण ही आज समाज में आपसी प्रेम, भाईचारा, मानवता, इंसानियत और नैतिकता खत्म होती जा रही है। व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए समाज को जाति और धर्म में बांटा जा रहा है। महिलाओं को जाति के बंधन में बांधा जा रहा है। महिलाएं कुछ आगे बढ़ी हैं लेकिन अभी स्थिति काफी खराब है। आर्थिक असमानता के कारण ही आज समाज में अमीरों और अरबपतियों की संख्याँ तो बढ़ रही है परन्तु समाज के गरीब लोग या तो जिस हाल में थे आज भी वही पे खड़े हैं या नहीं तो और गरीब ही होते जा रहे हैं. आर्थिक न्याय ही सामाजिक न्याय का नींव है. आर्थिक न्याय के बिना हम सामाजिक न्याय का कल्पना भी नहीं कर सकते. यदि वास्तव में हम सामाजिक न्याय के पक्षधर हैं तो हमें आर्थिक न्याय को मजबूत बनाना ही होगा. शैक्षिक असमानता के कारण ही हम समाज में वंचित वर्गों को अच्छी शिक्षा दे पाने में असफल साबित हो रहे हैं. हम जानते हैं कि शिक्षा के बिना किसी व्यक्ति, समाज या राष्ट्र का विकास हो ही नहीं सकता. शिक्षा ऐसी हो जो हमें सोचना सिखाये, कर्त्तव्य और अधिकार का बोध कराये, हमें हमारा हक़ दिलाये और हमें समाज और राष्ट्र के प्रति जिम्मेदार बनाये. क्या हम ऐसी शिक्षा समाज के सभी वर्गों को दे पाने में सफल साबित हो रहे हैं? क्षेत्रीय असमानता के कारण ही आज हम देश के सभी भागों खासकर ग्रामीण क्षेत्रों को विकास के मुख्य धारा से जोड़ने में विफल साबित हो रहे हैं. भारत को विकसित देशों के श्रेणी में लाने के लिए हमें सुदूरवर्ती गाँवों में विकास के किरणों को पहुँचाना होगा. आखिर हम दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई, बंगलुरु, अहमदाबाद, पुणे और हैदराबाद के अनुपात में ही अन्य शहरों और गाँवों का विकास करने में असफल क्यों साबित हो रहे हैं? हमें इस पर गम्भीरतापूर्वक विचार करना होगा. यदि हम इन्ही शहरों जैसे और शहर बनाने में कामयाब होते हैं तो न सिर्फ इन शहरों पर से लोगों का दवाब कम करने में कामयाब होंगे बल्कि हमें इस तरह के और कई अन्य शहर भी विकसित करने में सफलता मिलेगी जो क्षेत्रीय असफलता को ख़त्म करने में मील का पत्थर साबित होगा. औद्योगिक असमानता के कारण ही आज हमें कई गंभीर समस्याओं का सामना करना पर रहा है. ऐसा देखा जा रहा है कि जिस शहर में पहले से ही बहुत सारे उद्योग-धंधे लगे हुए हैं आज भी उन्ही जगहों पर नए-नए उद्योग और कल-कारखाने लगते जा रहे हैं. हमें नए-नए औद्योगिक शहर बसाने की जरुरत है. इसके दो फायदे होंगे. एक तो पुराने औद्योगिक शहरों पर जो लोगों का बोझ बढ़ता जा रहा है वह कम होगा और दूसरा हम नए औद्योगिक शहर बसाने में भी कामयाब होंगे. इसी तरह बिजली, पानी, सड़क, स्वास्थ्य, रेल और कृषि आदि अनेक क्षेत्रों में असमानताओं से आम जनों को जूझना पर रहा है. कहीं चौबीसों घंटे बिजली तो कहीं आज भी लोग लालटेन और ढिबरी युग में जीने को विवश हैं. कहीं पानी ही पानी तो कहीं पानी के लिए हाहाकार. कहीं पक्की सड़कों की भरमार तो कहीं कच्ची सड़क भी नहीं. कहीं बड़े-बड़े अस्पताल तो कहीं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भी नहीं. कहीं रेलवे लाइनों की जाल तो कहीं रेलवे का घोर अभाव. कहीं किसानों के लिए आधुनिक संसाधनों की भरमार तो कहीं किसान बेहाल. यह असमानता उस घुन की तरह है जो अंदर ही अंदर समाज को खोखला बनाता जा रहा है. हमें हर हाल में इस असमानता को मिटाना ही होगा.
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सामाजिक समानता ka hai
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सामाजिक समानता में स्वास्थ्य की समानता, आर्थिक समानता व अन्य सामाजिक सुरक्षा के अलावा समान अवसर व समान दायित्व भी आता है। वास्तव में यही वह अवस्था है, जब हर व्यक्ति को समान महत्व दिया जाए। दो या दो से अधिक लोगों या समूहों के बीच के संबंध की स्थिति को समानता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।