सामाजिक परिवर्तन से साहित्य की भूमिका निबंध
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साहित्य और समाज दोनो ही एक सिक्के के दो पहलू है यह बात सर्वविदित है कि भारतीय समाज में जन्म से समय से ही बच्चा किसी न किसी रूप में पारिवारिक परिवेश में बड़ा होता है। जब बच्चा तनिक समझने-बुझने स्थिति में जाता है, हंसने लगता है,खेलने लगता है यहीं से प्रारम्भिक जीवन में अज्ञान से ज्ञान प्राप्ति और सीखने का क्रम सतत चलता है, आजीवन चलता रहता है, भारतीय समाज में साहित्य मानव के जन्म से लेकर मृत्यु तक उससे जुड़ा है। भारतीय समाज को साहित्यिक ज्ञान से अनेक लाभ हुए है। साहित्य भारतीय सामाजिक जीवन को नैतिकता और संस्कार का पाठ पढ़ाता आ रहा है। साहित्यिक ज्ञानवर्धक पुस्तकें पढ़ने,सुनने तथा व्यवहारिक जगत से तो प्राप्त होता है परन्तु इनसे अधिक लाभ अनुभव से प्राप्त होता है। साहित्य और मनुष्य जीवन खासकर हमारे भारत में साहित्य और जीवन का गहरा सम्बन्ध है। साहित्य का आधार जीवन है। साहित्यकार समाज अथवा युग की उपेक्षा नहीं कर सकता क्योंकि सच्चे साहित्यकार की दृष्टि में साहित्य ही अपने समाज की आवाज है, भारतीय समाज में साहित्य की बहुत बड़ी भूमिका देश के उत्थान में रही है आदिकाल से ही इस बात को हम महसूस करते चले आ रहें हैं | इसीलिये भारतीय समाज को साहित्य,समाज का प्रतिबिम्ब आइना माना जाता है। साहित्य अतीत का वास्तविक दर्पण और भावी जीवन मार्गदर्शक पथप्रदर्शक भी माना जाता है। सच्चा साहित्य कभी पुराना नहीं होता, ऐसा साहित्य जीवन के शाश्वत मूल्यों को समाज के समक्ष प्रतिष्ठित करता है, उसके के उद्देश्यों को उसके महत्वपूर्ण सिद्धांतों को प्रतिपादित करता है उसके विस्तृत रूपों पर अनवरत् चर्चा करता है है,साहित्य का कार्य ही समाज में व्याप्त बुराईयों का बहिष्कार कर मानवता और नैतिकता और उच्च सिद्धांतों की बात करना है । यह सार्थक परिष्कृत चिन्तन भारतीय समाज में आधुनिक साहित्य की उपज ही कहा ही जा सकता है जिसने भारतीय समाज में व्याप्त कुरीतियों का उन्मूलन किया, साथ ही समाज की उन्नति का आधार भी बना जिसका साक्षात प्रभाव भारतीय समाज और साहित्य पर दृष्टिगोचर होता है, भारत में पहले प्राय: देखा गया कि संस्कृत को छोड़ अभिव्यति का माध्यम प्राकृत भाषा को बनाया गया था | जिसे सामाजिक परिवर्तन की दृष्टि से भी देखा जा सकता है सिद्ध साहित्य में प्रचलित धार्मिक रूढ़ियों, अंधविश्वासों और सामाजिक असमानता पर शुद्रों के साथ हो रहे अन्याय और प्रताड़ना को आड़े हाथों लिया और तीव्रता से विरोध किया तथा सभी क्षेत्रों में समान अधिकार की बात की, सामाजिक परिवर्तन को तीव्र करने का बीड़ा उठाया, भारतीय समाज में आ रहे परिवर्तन के कारणों को साहित्य ही दिशा दे रहा था और परिवर्तन स्वर की शंखनाद कर रहा था । आने वाली पीढ़ियों को संस्कारित और नैतिक मूल्यों के उत्थान में भी अहम् भूमिका निभा रहा था |
समाज की वास्तविक स्थिति का चिञण कर साहित्य उदासीनता को कम करता होता है ।भारतीय समाज और साहित्य लोकगीत और लोकसंस्कृति के माध्यम से जन जन को जोड. ने का काम साहित्यकार ने कर एक माला में पिरोने का प्रयास किया है | व्यवहारिक ज्ञान का आधार पोथियां नहीं बल्कि जीवन जगत से जुड़ी सच्चाई है जो परिष्कृत शास्वत जीवन में मिलती है, आडम्बर और पाखण्ड का घोर विरोध कर साहित्यकारों ने इस बात को साबित किया ।
साहित्य को सदैव भारतीय समाज में मानवता और संस्कारों को पोषित करने की दृष्टि से देखा जाता है,रचा जाता है क्योंकि साहित्य का उद्देश्य ही है उपेक्षित मानव का उद्धार , एकता ,सद्भावना और विश्वबन्धुत्व को बढ़ाना।
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Explanation:
साहित्यिक समाज को सांस्कृतिक करने के लिए सात राजीव नो मूल्यों की भी शिक्षा देता है एवं खाद्य की विसंगतियो दूर पार्टियों एवं विरोध भाषा को रेखांकित कर समाज का को संदेश प्रेषित करता है। जिससे समाज में सुधार आता है और सामाजिक विकास को गति मिलती है। साहित्य में मूल्य टन तीन विशेषताएं होती है जो इसके महत्त्व को रेखांकित करती है। हमें पता है कि साहित्यिक व माध्यम है जो समाज को व्यापक रूप से प्रभावित करता है। यह समाज में प्रो बंध की प्रक्रिया का सूत्रपात करता है, लोगों को प्रेरित करने का कार्य करता है और जहाँ एक ओर यह सत्य के सुखद परिणामों को रेखांकित करता है वहीं असत्य। का दुखद अंत कर सीख व शिक्षा प्रदान करता है।
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