India Languages, asked by rudrakshbhagat07, 5 months ago

सामाजिक स्तर का आधार वेशभूषा है।​

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Answered by noorainaliya132
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सामाजिक स्तरण: परिभाषा एवं कार्यकरण

सामाजिक स्तरण की अवधारणा...

स्तरण के अंतर्गत हम एक ही समाज के अंतर्गत पाए जाने वाली सामूहिक असमानता का अध्ययन किया जाता है। यह व्यक्ति के साथ मौलिक रूप से न जुड़ी होकर समाज या व्यक्तियों द्वारा थोपी गई विशेषता होती है। यह व्यक्तिगत विशिष्टता से आगे बढ़कर सामूहिक रूप धारण कर लेती है।

सामाजिक विभेद...

 दो व्यक्तियों के बीच पाई जाने वाली असमानता जैसे कि , जाति, धर्म, शिक्षा, पेशा, प्रजाति आदि के आधार पर पाई जाने वाली असमानता को स्तरण नहीं कहा जा सकता। सही मायने में इसे सामाजिक विभेदीकरण कहना ज्यादा उपयुक्त रहेगा। 

विभेद से स्तरीकरण...

दूसरी तरफ इन्हीं कारकों, मसलन जाति, धर्म, शिक्षा, पेशा या प्रजाति, शिक्षा, आय एवं पेशों के आधार पर समाज में पाई जाने वाली असमानता या विभिन्नता का सामूहिक स्तर पर देखा जाता है, तो उसे स्तरण कहा जाएगा।

सामाजिक स्तरण के आधार...

मुख्य रूप से सामाजिक स्तरण पांच आधारों पर होता रहा है- दास प्रथा, वर्ण, जाति, इस्टेट, एवं वर्ग।

जिम्मेदार प्रक्रिया....

स्तरण के पीछे पांच प्रकार की सामाजिक प्रक्रियाएं जिम्मेदार रही हैं।- विभेदीकरण, क्रमविन्यास, मूल्यांकन, पुरस्कार, दण्ड।

विभेदीकरण...

स्तरण के संदर्भ में विभेदीकरण का अर्थ है, भूमिकाओं, अधिकारों और दायित्वों का बंटवारा। समाज में विभिन्न समूहों का कार्य अलग-अलग होता है। प्रत्येक समूह मेंे भूमिकाओं और दायित्वों का सफल निर्वाह करने पर समाज में पुरस्कार एवं प्रोत्साहन की भी व्यवस्था होती है।

क्रमविन्यास...

स्तरण के अंतर्गत, लोगों को उनकी हैसियत के अनुसार क्रमबद्ध किया जाता है, जहां उनके व्यक्तिगत गुणों, उनकी दक्षता और उपलब्धियों को ध्यान में रखा जाता है।

मूल्यांकन...

प्रत्येक समाज अपने प्रचलित मूल्यों के आधार पर व्यक्तियों की स्थिति का मूल्यांकन करता है। यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि उस समाज में किसी स्थिति को कितनी प्रतिष्ठा प्राप्त  है। मूल्यांकन के मानदंड वस्तुनिष्ठ और व्यक्तिनिष्ठ हो सकते हैं।

पुरस्कार एवं दंड...

प्रत्येक स्तरण में पुरस्कार और दंड की व्यवस्था होती है। समाज अपने मूल्यों के अनुसार सभी कार्यों का मूल्यांकन करता है और उसी के अनुसार व्यक्तियों की सामाजिक स्थिति का निर्धारण करता है। समाज व्यक्तियों के व्यवहार को नियमित करने के लिए ही एेसा करता है।

भेद...

सामाजिक स्तरण जानबूझकर निर्मित की गई व्यवस्था होती है। इसके अंतर्गत कुछ विशेष  स्थिति वाले व्यक्ति या समूहों को अधिक अधिकार, प्रतिष्ठा, पद इत्यादि प्राप्त होते हैं। यह  दीर्घकालीन उद्देश्य के अंतर्गत होती है। इसके विपरीत सामाजिक विभेदीकरण स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होने वाली एक अल्पकालीन प्रक्रिया है। 

ऊंच नीच की भावना...

सबसे बड़ी बात, सामाजिक स्तरण में ऊंच-नीच(प्रतिष्ठा), अधीनता या हीनता की भावना पाई जाती है। जबकि सामाजिक विभेदीकरण में विभिन्न व्यक्तियों या समूहों के बीच विभाजन के बावजूद इनमें ऊंच-नीच या हीनता की भावना नहीं भी हो सकती है।

समांतर स्तरीय विभाजन...

स्तरण समाज की एक समांतर स्तरीय विभाजन है, जबकि विभेदीकरण विषमस्तरीय या खड़ा बंटवारा है। 

मानव निर्मित व्यवस्था...

सामाजिक विभेदीकरण स्वयंसिद्ध व्यवस्था है, जो उसकी व्यक्तिगत विशेषता होती है। इसमें परिवर्तन नहीं लाया जा सकता। स्तरीकरण बाद की स्वयं निर्मित की गई व्यवस्था होती है, जो सामूहिक बना दी जाती है। इसमें परिवर्तन किया जाना संभव होता है।

जटिल आधार..

सामाजिक विभेदीकरण के आधार सरल एवं स्पष्ट होते हैं इसका आधार जैविक भी हो सकता है। जैसे रूप रंग, यौन विभेद, स्वास्थ्य आदि।

जबकि स्तरण के आधार जटिल हो सकते हैं इसके अंतर्गत पारिवारिक प्रतिष्ठा, सम्पत्ति, शिक्षा, पेशा, शक्ति आदि हो सकते हैं।

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