सोमेश्िर की घाटी के उत्तर में ऊ
ँ
ची पितव मािा ै
,उसी पर बिल्क
ु
ि लशखर पर कौसािी िसा
ु
आ
ै। कौसािी सेदसू री ओर फिर ढाि श
ुरू ो जाती ै।कौसािी के अड्डेपर जाकर िस रुकी। छोटा-
सा,बिल्क
ु
ि उजडा-सा गाँि और ििव का तो क ीिं िाम-निशाि ि ीिं।बिल्क
ु
ि ठगे गये म िोग।
फकतिा खखन्ि था म।ैंअिखाते
ु
ए िस से उतरा फक ज ा
ँ
था ि ीिं पत्थर की म
ू
नत-वसा स्तब्ध खडा
र गया।फकतिा अपार सौंदयव बिखरा था,सामिे की घाटी में।इस कौसािी की पिवतमािा िे अपिे
अिंचि मेंय जो कत्य
ूर की रिंग-बिरिंगी घाटी नछपा रखी ै। इसमें फकन्िर और यक्ष ी तो िास
करते ोंगे।पचासों मीि चौडी य घाटी, रे मखमिी कािीिों जैसे खेत, सुिंदर गेरू की लशिाएँ
काटकर ििे ए िाि-िाि रास्ते,जजिके फकिारे-फकिारे सिे द-सिे द पत्थरों की कतार और इधर-
उधर से आकर आपस में उिझ जािेिािी िेिों की िडडयों-सी िहदयाँ।मि में तो िस य ी आया
फक इि िेिों की िडडयों को उठाकर किाई में िपेट ि
ँ
, आ
ँ
खों से िगा ि
ँ
ू।अकस्मात् म एक-
दसू रे िोक मेंचिेआए थे।इतिा सु
क
ु
मार,इतिा सुिंदर,इतिा सजा
ु
आ और इतिा निष्कििंक फक
िगा इस धरती पर तो ज
ूते उतारकर,पा
ँ
ि पोंछकर आगे िढ़िा चाह ए। धीरे-धीरे मेरी निगा ों िे
इस घाटी को पार फकया और ज ा
ँ
ये रे खेत और िहदया
ँऔर िि, क्षक्षनतज के धध
ुिं िेपि में
,
िीिे को रे में ध
ु
ि जाते थे
,ि ा
ँ
पर क
ु
छ छोटे पितव ों का आभास,अिभ
ु
ि फकया,उसके िाद िादि
थेऔर फिर क
ु
छ ि ीिं।
1. िेखक को प ाडी िहदयाँ फकसके समाि हदख र ी थी? 1/4
2. िेखक को ऐसा क्यों िगा फक ि ठगा जा च
ु
का ै? 1/4
3. कौंसािी की पितव मािा की सुिंदरता का र स्य क्या ै ? 1/4
4. कौसािी का सौंदयव िेखक को कै सा िगा? 1/4
5. उपय
ु
क्व त गद्यािंश का उचचत शीषकव लिखखए ।
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मुझे खेद है मुझे नहीं पता क्षमा करें
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