स्मृति का पाठ दो गोरैया
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जब लेखक झरबेरी से बेर तोड़ रहा था तभी एक आदमी ने पुकार कर कहा कि तुम्हारे भाई बुला रहे हैं, शीघ्र चले आओ। यह सुनकर लेखक घर की ओर लौटने लगा। पर लेखक के मन में भाई साहब की मार का डर था। इसलिए वह सहमा-सहमा जा रहा था। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उससे कौन-सा कसूर हो गया। उसे आशंका थी कि कहीं बेर खाने के अपराध में उसकी पेशी न हो रही हो। वह अज्ञात डर से डरते-डरते घर में घुसा।
Explanation:
मक्खनपुर पढ़ने जाने वाले बच्चों की टोली पूरी वानर टोली थी। उन बच्चों को पता था कि कुएँ में साँप रहता है। लेखक ढेला फेंककर साँप से फुसकार करवा लेना बड़ा काम समझता था। बच्चों में ढेला फेंककर फुसकार सुनने की प्रवृत्ति जाग्रत हो गई थी। कुएँ में ढेला फेंककर उसकी आवाज तथा उससे सुनने के बाद अपनी बोली सुनने की प्रतिध्वनि सुनने की लालसा उनके मन में रहती थी।
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